सूबे के अश्वारोही बल में जल्द 55 घोड़े शामिल किए जाएंगे। पंजाब से खरीद किए गए घोड़े की एमएमपी मुख्यालय, आरा में ट्रेनिंग चल रही है।

इनमें से 20 घोड़े भागलपुर जोन के अस्तबल को मिलने की संभावना है। विभागीय स्तर पर इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। करीब पांच करोड़ की लागत से अस्तबल को संवारने का काम चल रहा है।

दियारा और पहाड़ी इलाकों में सक्रिय अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए 1917 में अश्वारोही सैन्य बल की स्थापाना आरा में और 1921 में भागलपुर में अस्तबल की स्थापना की गई। यहां पर 72 घोड़ों को रखने के लिए अस्तबल बनाया गया था। उस वक्त 54 घोड़े (दो ट्रुप) की यहां पर प्रतिनियुक्ति की गई थी।

संसाधन के अभाव में पहले घोड़े से ही पहाड़ी क्षेत्र के दुर्गम इलाकों में गश्ती कराई जाती थी। 1986 तक यहां पर 24 घोड़े थे लेकिन धीरे-धोरे घोड़े रिटायर हो गए और आरा मुख्यालय को वापस भेज दिये गये। विभाग का कहना है कि घोड़े की आयु करीब 25 साल की होती है और ट्रेनिंग के बाद 20 साल तक ड्यूटी ली जाती है।

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घोड़े की नौ महीने की ट्रेनिंग होती है लेकिन बदमाश घोड़े की अलग से दो महीने की ट्रेनिंग कराई जाती है वर्तमान में आठ घोड़े से कोसी और गंगा के दियारा इलाके की गश्ती कराई जा रही है।

दियारा इलाके को किया जाता है कंट्रोल

जीरोमाइल स्थित एमएमपी कैंप से कोसी इलाके के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया व पूर्व बिहार के खगड़िया, बेगूसराय, नवगछिया, मुंगेर और भागलपुर के दियारा इलाकों में फसल बुआई व तैयारी के समय गश्ती कराई जाती है। विभाग का कहना है कि संबंधित जिले के एसपी एमएमपी मुख्यालय से अश्वारोही बल की मांग करते हैं। आदेश मिलने पर घोड़े को वहां पर भेज दिया जाता है। घोड़े की कमी को आरा मुख्यालय से पूरा किया जाता है। अभी निशा, माधुरी, शबनम, माइकल, राजेश, कस्तूरी, ज्योति व पूनम नामक घोड़े व घोड़ी को कोसी दियारा भेजा गया था।