नवगछिया : कदवा के बाद जगतपुर झील व कुरसेला ढाला के पास गरुड़ कॉलोनी बसाने की तैयारी चल रही है। वन विभाग ने दोनों जगहों पर कदम, बरगद, पीपल, गुलर, गम्हार, पाकड़ आदि के हजारों पेड़ लगाये हैं। सुंदरवन स्थित रेस्क्यू सेंटर में मौजूद गरुड़ को बाद में इन जगहों पर छोड़ा जाएगा, ताकि वह अपना कॉलोनी बसा सके।

डीएफओ भरत चिंतापल्ली ने कहा कि गरुड़ कदवा से जगतपुर झील व कुरसेला चारा की तलाश में जाता है। वहां उन्हें भरपूर मछली आहार के रूप में मिलती है। इसीलिए इन दोनों जगहों पर भरपूर पेड़ लगाये जा रहे हैं, ताकि वह अपना घोंसला बना सके। मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने बताया कि गरुड़ अपनी मर्जी से घोंसला के लिए पेड़ का चयन करता है। आमतौर पर कदम के पेड़ में ज्यादा घोंसला बनाता है। कुरसेला ढाला, जगतपुर झील, नारायणपुर, सतीशनगर, पसराहा आदि जगहों पर गरुड़ काफी दिखाई देता है। जगतपुर झील व कुरसेला के पास का वातावरण व आहार गरुड़ के अनुकूल है।

विश्व में 15 सौ गरुड़, भागलपुर प्रमंडल में सिर्फ 611

भागलपुर व बांका वन प्रमंडल के पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. सुजीत कुमार ने बताया कि पूरे विश्व में 15 से 16 सौ गरुड़ हैं। जबकि भागलपुर वन प्रमंडल में ही 611 हैं। कदवा में 600 तो सुंदरवन में 11 गरुड़ हैं। यहां का वातावरण अनुकूल होने के कारण गरुड़ की संख्या और बढ़ने की उम्मीद है। भागलपुर के अलावा असम में भी काफी गरुड़ है। विदेश में कम्बोडिया में ही सिर्फ यह पाया जाता है।

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सुंदरवन में दृष्टिविहिन गरुड़ भी मौजूद

चिकित्सक ने बताया कि सुंदरवन स्थित रेस्क्यू सेंटर में 11 गरुड़ में एक दृष्टिविहिन भी है। पूर्णिया के किसी व्यक्ति ने पक्षियों के झुंड में बैठे गरुड़ की दोनों आंखों को शॉर्टगन से घायल कर दिया था। इसके बाद उसका इलाज पिछले छह माह से रेस्क्यू सेंटर में चल रहा है। गरुड़ की दोनों आंखें खत्म हो चुकी हैं। रेटिना कमजोर होने की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। वह आवाज के सहारे की चल रहा है। जबकि शरीर के अन्य भागों का घाव अब भर चुका है। उन्होंने बताया कि गरुड़ का इलाज होम्योपैथी, आयुर्वेदिक व एलोपैथी के माध्यम से भी किया गया था, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि अभी यह गरुड़ डेढ़ से दो साल का है। यह कुछ माह पहले यहां आया था।