देश के जाने माने सोशलिस्ट, दिल्ली विश्व विद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर, सोशलिस्ट पार्टी के सुप्रीमो डा प्रेम कुमार सिंह के साथ बातचीत अंतिम पड़ाव पर था. वास्तव में, देश में जो मौजूदा हालात बने हुए हैं, इसमें दो-एक ऐसे पक्ष हैं, जिन्हें आलोचना तक स्वीकार नहीं है.

डॉ0 प्रेम कुमार सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर , दिल्ली)

पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने एक बड़े खासकर पत्रकार वर्ग को तो झकझोरा ही था, जिसपर उनके लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करना नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था. मैं (ऋषव मिश्रा ​कृष्णा) अपनी थोड़ी—सी बची हुई जिज्ञासाओं पर उनका पक्ष जानना चाह रहा था. प्रस्तुत है, उनसे बातचीत की तीसरी और अंतिम किस्त उन्हीं के शब्दों में :

बातचीत करते डॉ० सिंह के साथ वरिष्ट पत्रकार ऋषभ मिश्रा कृष्णा

प्रो सिंह ने गौरी लंकेश की हत्या को नरेंद्र दाभोलकर, पंसारे जैसे बुद्धिजीवियों की हत्या की एक कड़ी बताया. उन्होंने कहा कि गौरी लंकेश की हत्या दावोलकर साहब, पंसारे साहब आदि की पूर्व में हुई हत्या की एक कड़ी है. कुल मिला कर हमारा जो सामाजिक राजनीतिक व्यवहार है, जो पिछले ढाई तीन दशकों में तैयार हुआ है. जाहिर है इसमें लोकतांत्रिक चेतना की निहायत कमी होती जा रही है. इसे वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है. भारतीय समाज जो काफी लचीला रहा है. यहां तक की धर्म की जो उदार धाराएं रही है (कट्टर धारा के समानांतर ) उनका भी संकुचन हो रहा है और एक कट्टर धारा सामाजिक स्तर पर उभर कर सामने आ रही है.

 

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गौरी लंकेश के साथ जुड़ा है भावनात्मक रिश्ता

डॉ सिंह का अभिवादन करते सोशलिस्ट नेता खेल विद गौतम कुमार प्रीतम

मैं शुरू से ही कह रहा हूं कि नव उदारवादी व्यवस्था जो हमने स्वीकार की है, तब से यह होना शुरु हुआ है और अब बढ़ते-बढ़ते ढाई तीन दशकों में लोगों की हत्याओं तक उतर आया है. गौरी लंकेश एक पत्रकार थी जिस पत्रिका का वह संपादन करती थी ” लंकेश पत्रिका “! उनके पिता पी लंकेश उसे निकालते थे. हम लोगों का एक भावनात्मक पहलू भी गौरी लंकेश के साथ इस मायने में जुड़ा हुआ है कि उनके पिता पी लंकेश समाजवादी थे आर यू आर अनंतमूर्ति के अलावा कन्नड़ के दूसरे साहित्यकार और जो बुद्धिजीवी हैं, उनकी तरह पी लंकेश प्रखर लोहियावादी माने जाते थे. यह हत्या हमारे लिए पी लंकेश की बेटी की भी हत्या है.

गौरी लंकेश

मोदी जी को क्लीनचिट !

हत्या के बाद जो सोशलसाइटों पर हो रहा है, एक खास ट्वीट जिसकी चर्चा हो रही है, जिसमें गौरी लंकेश के मृत्युपरांत किसी बुद्धिजीवी के लिए वह भी एक महिला के लिए जो अपशब्दों का प्रयोग हुआ है, गौरी लंकेश की हत्या पर विरोध दर्ज करने वाले लोगों के प्रति जो अपशब्दों का प्रयोग हुआ है, यह हत्याओं की कड़ी में एक नई बात है. यह दर्शाता है कि नव-उदारवाद ने हमारी सामाजिक तहजीब है, नागरिक के नाते हमारा जो व्यवहार है, उसे भी खोखला बना दिया है. डॉ कुमार ने पीएम मोदी को क्लीनचिट देते हुए कहा कि अपशब्द का इस्तेमाल करने वालों को मोदी द्वारा फॉलो किये जाने की बात महत्वपूर्ण नहीं है उसका भी बीजेपी ने आधिकारिक रूप से जवाब दिया है कि ट्विटर पर प्रधानमंत्री के साथ कई लोग जुड़ जाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि प्रधानमंत्री उन लोगों के व्यवहार के लिए जिम्मेदार हो.

अब मोदी पर निशाना

नवगछिया स्टेशन पर इस अंदाज में दिखे डॉ प्रेम कुमार।

डॉ प्रेम कुमार असल बात पर आते हैं और कहते हैं सवाल वही है कि नरेंद्र मोदी जिस राजनीति को लेकर चल रहे हैं, उस राजनीति में, इसी तरह के तत्वों को प्रश्रय मिलता है. यह भी कह सकते हैं कि इसी तरह के तत्वों पर प्रधानमंत्री की राजनीति आश्रित है. हमारा कहना यह है कि नरेंद्र मोदी और उनको जो फॉलो कर रहे हैं, जिन्हें भक्तों की संज्ञा दी जाती है. यह भारतीय समाज के चरित्र में कहीं ऊपर से आकर नहीं टपके. हर युग के अपने युग पुरुष होते हैं. एक युग था स्वतंत्रता आंदोलन का उसके अपने युगपुरुष थे. हम सब जानते हैं. आजादी के बाद का भी दौड़ है, जिसके अपने युग पुरुष हैं. 80 का दशक आते-आते भारतीय संवैधानिक स्खलन शुरू हुआ और जो ढलान आई उसके भी अपने युग पुरुष हैं. 1991 में नई आर्थिक नीतियां लागू करने के बाद जब हमने संविधान के तीनों मूल्यों समाजवाद, धर्मनिपेक्षवाद और लोकतंत्र की तिलांजलि दे दी तो उसके भी अपने युगपुरुष हैं.

 

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