मंदार का अस्तिव संकट में, देवासुर संग्राम का फिर हुआ आगाज

नवगछिया डॉट कॉम के न्यूज रूम से मोहन पोद्दार

सनातन धर्म के विभिन्न ग्रंथों मे देव असुर संग्राम का कई बार जिक्र मिलता है. यह संग्राम अच्छाई और बुराई के बीच था. बिहार के भागलपुर जिले का मंदार पर्वत देव असुर संग्राम का गवाह रहा है. देवताओं और दानवों ने इसी पर्वत का इस्तेमाल कर समुद्र मंथन के लिये किया था. इसी ऐतिहासिक घटना के परिणाम ने संदेश दिया था कि हमेशा जीत सत्य की होगी. आज एक बार फिर मंदार को बचाने के लिये देव असुर जैसे संग्राम की जरूरत आन पड़ी है. विकास के नाम पर मंदार पर उपलब्ध ऐतिहासिक धरोहरों को नष्ट किया जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता गौतम सुमन ने एक बार ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिये जंग का ऐलान कर दिया है. देवा असुर संग्राम के तरह ही गौतम की जंग में भी सृजन बनाम विध्वंस आमने सामने है. पड़ते हैं गौतम ने क्या ऐलान किया है. उनके ही शब्दों में…….

अंग क्षेत्र के अस्मिता की ऐतिहासिक धरोहर मंदार शिलालेख की अस्तित्व के लिए लोगों को गोलबंद कर करेंगे ऐतिहासिक जंग का ऐलान : गौतम सुमन

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अंग महाजनपद के ऐतिहासिक धरोहर की संस्कृति के परिचय ‘मंदार पर्वत’ एक बार फिर संकट में है। यहाँ विकास की दुहाई देकर प्राचीन चीज़ों को नष्ट किया जा रहा है। इन अति प्राचीन संपत्तियों में मंदार के शिलालेख भी हैं। यहाँ के पत्थरों पर कई जगह कई प्रकार से कई लिपियों में कुछ-कुछ लिखा गया है। ये लेखन विभिन्न समयों में विभिन्न हस्तियों द्वारा लिखवाये गए हैं। इसमें क्या कुछ लिखा गया है इसे सम्पूर्ण रूप से अबतक पढ़ा नहीं जा सका है। हाँ, यहाँ के दो शिलालेखों को पढ़े जाने की चर्चा ‘कोर्पस इनस्क्रिप्शनम इन्डिकेरम’ में जॉन फेथफुल फ्लीट ने जरुर की है।

उक्त बातें आज अंग उत्थानान्दोलन समिति,बिहार-झारखंड सह अंग मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौतम सुमन ने प्रेस बयान जारी कर प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही । उन्होंने कहा कि शिलालेख किसी भी स्थान की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करता है । इससे इतिहास संपुष्ट होता है। उन्होंने कहा कि आज भी जब दक्षिण भारत के विशाल चोल साम्राज्य की चर्चा होती है तो वह आदित्यसेन (जिनकी रानी कोण देवी थी, जिन्होंने पापहरणी कुंड बनवाया) के मंदार हिल के शिलालेख के बिना पूरी नहीं होती है। इसे आप किसी भी ऐतिहासिक स्रोत पर पढ़ सकते हैं। हमें यह पढ़ते हुए गर्व होता है कि बड़े-बड़े साम्राज्यों के आक़ाओं की श्रद्धा भूमि मंदार रही है। जारी विज्ञप्ति में श्री सुमन ने बताया है कि आज पर्यटन विकास के लिए मंदार के इन शिलालेखों को तोड़ा जा रहा है। अभी पापहरणी के पास सफ़ा धर्म की बिल्डिंग के पीछे एक बड़े पत्थर पर खोदे गए इस शिलालेख को रोप-वे बनाने के लिए क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। इस संबंध में बांका के जिलाधिकारी को लिखित सूचना दे देने की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इससे राज्य सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन की कुत्सित मनसा स्पष्ट साबित हो रहा है ।उन्होंने कहा कि रोप-वे के निर्माण से जुड़े कार्य प्राइवेट कंपनी के लोग थोड़ा हटकर करने के लिए तैयार नहीं हैं। लिपि के अल्प ज्ञानवश वे इस शिलालेख के बारे में अनर्गल टिप्पणी करते हुए इसे तोड़ने का मन बनाए हुए हैं और प्रशासन को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। विरोध करने पर उनके द्वारा दलील दी जाती है कि – ‘थोड़ी सी लिपिलेख मिट भी जाएगी तो क्या होगा?’उन्होंने अंग महाजनपद के इस ऐतिहासिक धरोहर के साक्ष्य मंदार के इतिहास को मिटा देने के कार्य को सुनियोजित साजिश बताते हुए इसके विरूद्ध इन्क्लाबी तेवर के साथ चरणबद्ध आन्दोलन करने की चेतावनी देते हुए फिलहाल इस खुदाई कार्य को बन्द करने की माँग की है ।उन्होंने बताया कि यह शिलालेख पाटलिपुत्र के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के काल के बाद लिखा गया है। इतिहास साक्षी है कि इस शिलालेख में प्रयुक्त लिपि ब्राह्मी संस्कृत है,जिसे उर्दू की तरह दायें से बायें पढ़ा जाता है। यह लिपि उसी काल में प्रयुक्त थी। इससे स्पष्ट होता है कि ईसा मसीह के पैदा होने से भी पहले यह लेख मंदार की इस चट्टान पर थी ।

उन्होंन अपनी बातों का खुलासा करते हुए कहा कि मंदार पर्वत के शिलालेखों के बारे में इतिहासज्ञ व मुरारका कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. अभय कांत चौधरी के किताब ‘मंदार परिचय’में इसका ज़िक्र है और फिर इसे स्टैटिस्टिकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन (१८३४) के संस्थापक आयरिश (आयरलैंड) मूल के इतिहासकार रॉबर्ट मोंटगोमरी मार्टिन, स्कॉटिश (स्कॉटलैंड) मूल के फिजिशियन फ्रांसिस बुकनन हेमिल्टन और ब्रिटिश सिविल सेवा से आये जॉन फैथफुल फ्लीट ने भी किया है साथ ही सन 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (पुरातत्व विभाग) की स्थापना करनेवाले ब्रिटिश मूल के आर्मी इंजिनियर सर एलेक्जेंडर कनिंघम ने भी इसकी चर्चा की है।

उन्होंने इसके के अलावे भी पीसी रायचौधरी (गजेटियर लेखक), सर मोंटगोमेरी मार्टिन, जोसफ़ बायर्ने, स्टीवर्ट मरे, डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर, राजेन्द्रलाला मित्रा जैसे चोटी के कई इतिहासकारों द्वारा इसकी चर्चा का हवाला दिया है।उन्होंने विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि अभी रोप-वे के निर्माण लिए जगह का चयन कर वहां से पत्थर पर पड़ी मिट्टी हटाकर उसकी सफ़ाई की गई है और इस स्थल पर ग्राफ़िकल चिन्ह लगाकर ड्रिल मशीन से कुछ छेद कर दिए गए हैं। अभी और छेद किये जा रहे हैं जिसपर टेंशन वायर बांधे जाएंगे।उन्होंने जारी विज्ञप्ति के जरिए कुछ सवालों को रखते हुए राज्य सरकार व जिला प्रशासन से जानना चाहा है कि रोप-वे के लिए जगह का परिवर्तन क्यों नहीं किया जा सकता है?,क्या रोप-वे का महत्व अति प्राचीन शिलालेख से अधिक है?, क्या किसी व्यक्ति या संस्था को यह अधिकार है कि विकास का सपना दिखाकर हमारे इतिहास को बरबाद कर दे?, क्या इतिहास के इन साक्ष्यों को मिटाकर मंदार पर्वत का अस्तित्व अक्षुण्ण रह पाएगा?,प्रशासन के लोग इतिहास के महत्व को समझते हैं या सिर्फ नौकरी पाने के लिए पढ़ रहे थे?, यहाँ के बुद्धिजीवी और सभी पार्टी व दलों के नेता इस मुद्दे पर आखिर चुप क्यों हैं?,

बिहार के राजस्व मंत्री (स्थानीय बांका के विधायक) ने भी इसे रोकने के लिए किसी प्रकार की कोशिश क्यों नहीं की है?, स्थानीय पत्रकारों ने भी इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया है! इनकी भूमिका इस मुद्दे पर क्यों संदेहास्पद बनी हुई है?, क्या युगों-युगों से मंदार की नियति यही है कि कभी इसका संहार अनंतवर्मन चोडगंगा करे तो कभी मुग़ल सेनापति (धर्म परिवर्तित) काला पहाड़ और अब कुछ अज्ञानियों द्वारा हो?, क्या इस बर्बादी को हम सबकुछ देख-समझकर भी चुप बैठे रहें? डर जाएं?, क्या हम अब भी अपनी इतिहास -भगोल व सभ्यता-संस्कृति की बर्बादी पर चुप होकर अपनी दिनचर्या में खोए रहेंगे और दूसरों पर तोहमत लगायेंगे?,क्या हम ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाते हुए किसी भी माध्यम (मीडिया) से इस मुद्दे को उछालेंगे या इससे दूर रहने के लिए कोई बहाना उछालेंगे?
उन्होंने सामाजिक-साहित्यिक,सांस्कृतिक,शैक्षणिक,व्यवसायिक,आध्यात्मिक और राजनीतिक लोगों से अनुरोध किया है कि वे अपने-अपने स्तर से भारत के किसी भी प्रान्त-जिला या विदेशों में भी हों तो भी अंग क्षेत्र के अस्मिता की इस ऐतिहासिक धरोहर समुद्र मंथन की भूमि मंदार पर्वत के इस अति प्राचीन शिलालेख को बचाने के लिए एकजूट होकर जागृत हों ।

गौतम सुमन से संपर्क ?

गौतम सुमन
राष्ट्रीय अध्यक्ष- अंग उत्थानान्दोलन समिति,बिहार-झारखंड सह अंग मुक्ति मोर्चा ।
संपर्क सूत्र :- 9934880594