हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक 2525 किलोमीटर के अपने सफर में भागलपुर से गुजरने वाली गंगा हर साल जिले के 16 में 10 ब्लॉक में कहर बरपाती है। हजारों एकड़ खेत कटाव में बहा ले जाती है और पहले निगल चुके खेतों की सैकड़ों एकड़ जमीन उगल भी जाती है। यहां खेती करना चुनौती से कम नहीं है। लेकिन जिले के हजारों किसान हौसले और मेहतन से उम्मीद की फसलें लगा रहे हैं।

उनकी उम्मीदें पूरी भी हो रही हैं। सरसों, मक्का, कलाई, परवल, परोल, खीरा, कद्दू, करेली, बोरा व टमाटर की बड़ी पैदावार उनका जीवनस्तर बदल रही है। इस्माइलपुर, गोपालपुर, नवगछिया, नारायणपुर व सुल्तानगंज में 9100 एकड़ जमीन 2018 में गंगा में समाई। किसान टूटे, लेकिन मेहनत की और गंगा से उगली जमीन पर खेती की। अब लहलहाती फसलें उनके चेहरे पर मुस्कान ला रही हैं।

नाव से जा रहे खेत, काला सोना बदल रही तकदीर गोपालपुर-इस्माइपुर में कटाव से 5000 एकड़ जमीन गंगा में समाई। हालांकि पहले निगल चुकी करीब 2000 एकड़ बाहर आई तो खेती शुरू की। अपनी खेतों तक वे नाव से पहुंचने लगे। इस्माइलपुर के किसान राजेंद्र मंडल, जोगिंदर मंडल ने बताया, परेशानी है। गंगा अपना स्वभाव नहीं छोड़ती तो हम कैसे छोड़ें? इस जमीन पर कलाई (काला सोना), मकई, राई, खेसारी की फसल लहलहाती है। परवल, तरबूज, खरबूजे आर्थिक मजबूती देते हैं। इसी जमीन से अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं।

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