नवगछिया. जिले के शक्तिशाली पीठ में से एक है तेतरी दुर्गा मंदिर में दसहरे के अवसर पे यहाँ लोगों का हुजूम लगा रहता है,आस पास के जिले से यहाँ श्रद्धालु अपनी अपनी मनोकामना लेकर आते हैं ,इस मंदिर की माता बहुत श्रेष्ठ मानी जाती है ,श्रद्धालुओं की मनोकामना अवश्य पूरी होती है.तेतरी दुर्गा मंदिर की स्थापना 1632 ईस्वी में हुई है. मेला समिति के अध्य्क्ष रमाकांत राय उर्फ़ टुनटुन मास्टर बताते हैं कि मंदिर के बगल में कलबलिया धार है

जहाँ 1632 ईस्वी में काजीकोरैया से माता का मेढ़ भस कर आया था, काजीकोरैया से माता के मेढ़ को ले जाने के लिए सैकड़ों लोग आये मगर माता का मेढ़ नहीं उठा,बहुत प्रयास करने पर भी मेढ़ को लोग हिला भी न पाए अंत में वो लोग वापस लौट गए. तेतरी के ग्रामीण बताते हैं कि हमारे पूर्वजों को स्वप्न आया था कि 10 लोग मिल कर आओगे तो ये मेढ़ उठ जायेगा,फिर सच में ऐसा ही हुआ.

कलबलिया धार से मेढ़ को बाहर निकाला गया और मंदिर की स्थापना की गयी,यह मंदिर पहले फुस का हुआ करता था. इस मंदिर में सबसे पहले सोरैया जाती के लोगों द्वारा पूजा सुरु किया गया. फिर 2001 में सभी ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर की स्थापना की गयी, जिसकी अनुमानित राशि लगभग 8 से 10 करोड़ है. इस बार मंदिर में दुर्गा पूजा के अवसर पर पहली पूजा से आठवी पूजा तक झाँसी से आयी अखिलेस्वरी जी के द्वारा दिन के 3 बजे से रात के 8 बजे तक प्रवचन का आयोजन किया गया है. फिर आठवी पूजा को भजन सम्राट सुनील मिश्र के द्वारा देवी जागरण का भी आयोजन किया गया है.

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सबसे बड़ी बात मंदिर का विसर्जन काफी भव्य तरिके से होता है विसर्जन में सैकड़ों लोग अपने कन्धों के सहारे माता की प्रतिमा को मंदिर प्रांगण से कलबलिया धार तक लेकर जाते हैं, और कंधे के सहारे ही विसर्जित करते हैं. विसर्जन के दौरान आस पास के कई जिले के लोग इसमें हिस्सा लेते हैं. मेला कमिटी के अध्य्क्ष रमाकांत राय पिछले 10 वर्षों से मंदिर के सेवा और मेला कमिटी के अध्य्क्ष के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं,वे बता रहे हैं कि इस बार मंदिर में झूला और दुकानों की संख्या पहले से भी ज्यादा है.