हर व्यक्ति के जीवन में अगर सुख है तो दुख भी होता है। जीवन में एक बार यह सभी के साथ होता है, जिंदगी में उतार चढ़ाव आता है। व्यक्ति का जीवन सुख और दुखों से मिश्रित है। पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड भी दे, परन्तु दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बने ही रहते है, फिर वे चाहें, संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में हो सकते है।

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महाऋषियों के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष बनता है। कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है। इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है।

क्या है पितृ दोष?
ऐसे सभी पूर्वज जो आज हमारे बीच नहीं, परन्तु मोहवश या असमय मृ्त्यु के कारण आज भी मृ्त्यु लोक में भटक रहे है। या ये भी कह सकते हैं जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है। इस कारण पितृ दोष का निवारण किया जाता है। ये पूर्वज पितृयोनि से मुक्त होना चाहते हैं लेकिन जब उन्हें आने वाली पीढ़ियों द्वारा भूला दिया जाता हैं तो पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है।

कैसे बनता है पितृ दोष?
नवम पर जब सूर्य और शनि  की युति या दृष्टि  हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा शनि  जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऐसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

फल ?

दोष के कारण पिता पुत्र में अक्सर तनाव बनी रहती है या पिता पुत्र पर और पुत्र पिता पर के बाते पर अक्सर झिझकते रहते है और एक दूसरे को हमेशा ताना देने में लगे रहते है