नवगछिया : फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। वही अजीत बाबा ने बताया कि इस साल 1 मार्च को सुबह 8 बजकर 58 मिनट से पूर्णिमा तिथि लग रही है। इसलिए शाम 7.30 मिनट तक भद्रा के खत्म होने पर होलिका दहन किया जा सकेगा। होलिका दहन के लिए घर में और बाहर होलिका की पूजा की जाती है।
पूजा में चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल और गोबर की गुलरियां शामिल की जाती हैं। पूजन की सभी सामग्रियां अर्पित करने के बाद होली की परिक्रमा करते हुए इसमें पानी चढ़ाएं।
इस दिन गेंहू की बाली में भी होलिका दहन में भूनी जाती है। भूनने के बाद सभी को वितरित करके गले मिला जाता है। इस समय गेहूं की फसल कटती है। इसलिए ईश्वर को होलिका दहन के जरिए भगवान को गेंहू की बाली समर्पित की जाती है। ऐसा माना कि होलिका दहन की राख से स्नान करने पर हर रोग से मुक्ति मिलती है।
एक मान्यता है कि होली की भस्म शुभ होती है और इसमें कई देवताओं की कृपा होती है। इस भस्म को माथे पर लगाने से भाग्य अच्छा होता है और बुद्धि बढ़ती है। दूसरी मान्यता यह है कि ये भस्म शरीर के अंदर स्थित दूषित द्रव्य सोख लेती है। इसलिए भस्म लेपन करने से कई तरह के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं। एक अन्य मान्यता में होली की भस्म को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को नकारात्मक शक्तियों और अशुभ शक्तियों से बचाया जा सकता है। कुछ लोग ताबीज में भरकर इसे पहनते हैं, ताकि बुरी आत्माओं और तंत्र-मंत्र का उन पर असर नहीं हो।