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ऋषव मिश्रा कृष्णा, नवगछिया : नवगछिया अनुमंडल की संस्कृति में नाटक पूरी तरह से रचा बसा है. हर त्योहार, उत्सव नाटक के बिना अधूरा मना जाता है. डीजे संस्कृति के इस दौड़ में भी नवगछिया अनुमंडल में त्योहारों के मौसम में विभिन्न गांवों में करीब सौ से अधिक लंबे नाटकों का मंचन किया जाता है. नाटकों के मंचन में अपनी भागीदारी दिखाने वाले ग्रामीण कलाकार गैर व्यवसायिक होते हैं फिर भी यहां के नाटकों में ऑर्केस्ट्रा या डांस शो से ज्यादा भीड़ देखा जा सकता है. नवगछिया के कलाकार ग्रामीण रंग मंच से बड़े, छोटे परदे तक का भी सफर तय कर रहे हैं और अपने गांव का नाम रौशन कर रहे हैं. प्रसिद्ध सोनपुर मेले में विगत वर्षों नाटकों का प्रदर्शन करने वाले खरीक के राघोपुर के कलाकारों को राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चूका है.

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क्या है नवगछिया के नाटकों का इतिहास

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नवगछिया में नाटकों का इतिहास लगभग सैकड़ो वर्ष पुराना है. लेकिन 18 वीं सदी के शुरूआती वर्षों से ही रात भर खेले जाने वाले नाटकों का प्रमाण मिलता है. बूढ़े बुजुर्ग कहते हैं कि नवगछिया का इलाका छै परगना के अधीन आता था और भारत में इस्ट इंडिया कंपनी के शासन से पहले नवगछिया का इलाका आलमनगर के राजा के रियासत में था. उस समय आलम नगर के राजा झौव्वन सिंह कला प्रेमी थे. उस वक्त रामायण, महाभारत, दाटा धर्मराज शैली के नाटक बाबा बिशु रॉउत, दाता धर्मराज, हरिश्चन्द्र, राजा विक्रमादित्य आदि नाटकों का मंचन किया जाता था. भारत छोड़ो आंदोलन के समय नाटक विचार अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हुआ करता था. आजादी के बाद नाटकों की परंपरा काफी समृद्ध हुई. इस समय बड़े बड़े मशालों से रंगमंच को प्रकाशमय किया जाता था और बिना किसी ध्वनि विस्तारक यंत्र के नाटकों का आयोजन किया जाता था. वर्ष 1970 का दशक नाटकों के पुनरुत्थान के लिए स्वर्णिम काल माना जाता है. पुराने कलाकारों से मिली जानकारी के अनुसार इस दशक में कई सामाजिक नाटकों का मंचन किया गया. जिससे आमलोगों की दिनचर्या में नाटक अहम स्थान रखने लगा. इस समय कई युवा प्रगतिशील लेखकों ने नाट्य लेखन को अपना करियर भी बनाया. इस समय कई कालजयी नाटक लिखे गए. आज भी रंगमंच पर 50 फीसदी ऐसे नाटकों का मंचन होता है जो 1970 और 1980 के दशकों में लिखे गए. इन नाटकों में पराजय, टूवर, नागिन, धूल का फूल, फैंक दो हल बन्दूक उठा लो आदि प्रमुख हैं. उस समय नाटक का ऐसा क्रेज था कि नाटक के नायक की गांव में किसी फिल्म के मशहूर अभिनेता से काम नहीं थी.

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ये हैं सदाबहार कलाकार

नवगछिया के कई ऐसे कलाकार हैं जन्होंने अपनी कला का लोहा नवगछिया ही नहीं आस पास के क्षेत्रों में भी मनवाया. नवगछिया के तेतरी गांव के प्रभाषचंद्र मतवाला स्थानीय नाटकों के माहनायक कहे जाते हैं. वे लगभग चार दशकों ज़े रंगमंच पर सक्रिय हैं. उन्होंने करीब तीन दर्जन नाटकों को खुद लिखा और उनका कई बार सफल मंचन भी किया. इनके द्वारा लिखित नाटक टूवर सबसे सफलतम रहा. रंगमंच पर टूवर आज भी प्रासंगिक है और मंचन किया जाता है. वर्तमान में श्री मतवाला नवगछिया व्यवहार न्यायालय में अधिवक्ता हैं. बिहपुर के बभनगामा गांव के स्व अमिय हलाहल उर्फ़ वेदानंद मिश्र की पहचान हास्य कलाकार की थी. उन्होंने नवगछिया के रंगमंच के माध्यम से राज्य स्तरीय पहचान बनायी थी. उनके प्रहसन आज भी मंचन किये जा रहे हैं. कई सदाबहार कलाकार हुए जिन्होंने अपने प्रतिभा के माध्यम से नवगछिया के ग्रामीण रंगमंच को समृद्ध किया.

इन्हेंने बनाया मुकाम

नारायणपुर के प्रसिद्ध लोकगायक व संगीतकार चेतन परदेसी बचपन से ही ग्रामीण स्तर के नाटकों में दृश्य के मध्यांतर में गाना गाते थे. चेतन अब तक 30 सफल लोकगीत अलबम और कई भोजपुरी फिल्मों में गीत संगीत दे चुके है. भोजपुरी फिल्मों में नरेंद्र गुलशन हास्य कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके हैं. वे गायक भी हैं. उन्होंने अपनी शुरुआत नाटकों में हास्य कलाकार के रूप में की थी. छोटे परदे पर कई सीरियल में अभिनय कर रहे पंकज मेहता नाटकों से ही प्रेरणा पाकर मुम्बई की ओर रुख किया था. नवगछिया में बनी फिल्म यादव जी के हीरो नवगछिया निवासी दिलीप आनंद ने कहा कि वे बचपन से ही नाटक रात भर जग जग कर देखते थे. नाटकों की प्रेरणा से उन्होंने फिल्मों की ओर रुख किया. दिलीप एक्सन राजा नामक फिल्म मुख्य भूमिका में हैं. कभी नगरह गांव में रंगमंच पर नाटक लिख कर उसे निर्देशित करने वाले मोहन मुरारी सिंह छोटे परदे के जाने माने कलाकार हैं. कई चर्चित धारावाहिकों में श्री सिंह अभिनय कर चुके हैं.

फोटो: रुपेश कुमार