नवगछिया डॉट कॉम : आखिरकार ईश्वर और अल्लाह ने अपने इबादती रत्न को पास बुला लिया। इलिल्ला जितने दिल से अल्लाह की इबादत में नमाज अता करते थे, उतनी ही श्रद्धा से भोलेनाथ और माता शक्ति की आराधना में शहनाई बजाते थे। नवरात्रि पर भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर में 10 दिनों तक शहनाई वादन करनेवाले इलिल्ला ने एक बार दुर्गा—पूजा और रमजान एक ही माह में पड़ने पर रोजा नहीं रखा था, क्योंकि शहनाई बजाने में लगनेवाली उर्जा नहीं मिल पाती। सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी मिसाल अब कहां नसीब हुआ करती हैं। तब मैं प्रभात खबर में था, जब बूढ़ानाथ मंदिर के एक छोटे से कमरे में उनके साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि कलाकार का अपना धर्म कहां होता है! कलाकार की तो जाति भी नहीं होती! मिश्रा, खां ये सब नाम के श्रृंगार हैं। कलाकार जाति, धर्म और सरहद की सीमाओं से भी परे होता है। आज इलिल्ला खां साहेब हमारी सीमाओं से ही दूर हो गए।

शहनाई के उस्ताद बिसमिल्ला खां के नवासी और बिहार के अपने स्तर के एकमात्र बनारस घराने के शहनाई वादक इलिल्ला खां के निधन से भागलपुर के लोगों और कला प्रेमियों संग मैं भी काफी आहत हुआ। सुबह से काम में मन नहीं लग रहा था। दिन भर सोचता रहा कि करीब चार दशक पहले भागलपुर आए इलिल्ला खां यहीं के होकर रह गए, भागलपुर को देश-दुनिया में एक पहचान दी। बदले में हमने उन्हें क्या दिया! आंत की गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की खबर हमें(सबको) क्यों नहीं लगी! देर से लगी तो क्यों! या फिर जिन्हें जानकारी थी, वे क्या कर पाए! आकाशवाणी में उन्हें हाई ग्रेड कलाकार का दर्जा तो प्राप्त था, लेकिन प्रशासन और सरकार को उनकी अपेक्षित कद्र नहीं रही।

तबला वादक अनुमेह मिश्रा से फोन पर उनके बीमारी और परिवार के बारे में पूछा तो दु:ख हुआ। इलिल्ला के आंत में छेद था, इसका इलाज संभव तो था, लेकिन मुंबई में। पैसा, पहुंच जैसी कई बाधाएं थी। प्रशासन और सरकार की मदद बिना शायद संभव नहीं था। हमलोगों ने भी कौन-सी रत्ती भर कोशिश ही कर ली! पता तो ढेर लगा पाएं! भागलपुर से उन्हें पटना ले जाया गया, लेकिन पल्स नहीं मिलने और बीपी डाउन होने के कारण इलाज संभव नहीं था। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। मतलबी दुनिया को छोड़ इलिल्ला रुखसत हो गएं।

दु:ख यह जानकर भी हुआ कि अभी एक-डेढ़ साल से ही उनके चार में से एकमात्र बेटे ने शहनाई थामी थी(बाकी तीन बेटे छोटे-मोटे काम करते हैं)। परिवार का कमाने वाला सदस्य ही छिन गया। जैसे-तैसे परिवार का भरण-पोषण होता है। काश, कुछ और वर्ष पुत्र को पिता का सान्निध्य मिल पाता, तो उनकी परंपरा जीवित रह पाती। ईश्वर-अल्लाह उनके पुत्र को उनकी कला बख्शें।

————————————————————————————

Whatsapp group Join

चलते—चलते मेरे गुरुदेव की लिखी इलिल्ला को समर्पित यह कविता

सब गम के समन्दर में : परमहंस स्वामी आगमानन्द जी महाराज

सदा बजाते थे मस्ती में
मंजे-सधे सुर में शहनाई ।
उस्ताद थे अपने साजों के
संगीत में अपनी धाक जमाई ।।

पुस्तैनी कुदरती हुनर था
हर महफिल की शान बढ़ाया ।
सब मजहब कौमों ने जिनको
अपने गहरे दिल में बसाया ।।

विस्मिल्ला खां जी नाना थे
कर रियाज इल्मी सुर वाई ।
देश विदेश में बजा बजाकर
अंग देश खुशबू फैलाई ।।

उस आलिम फाजिल तालिम के
कायल थे सब लोग लुगाई ।
वादक गायक हैं अनेक
बस भागलपुर में इक शहनाई।।

वेदर्द हवा का झोका आया
छीना नूर, नहीं भरपाई ।
नाम सदा दुनिया में रहेगा
अब नहीं रहे इल्लिला भाई ।।

सबकी आंखें गीली ग़म में
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई।
एक चिराग के बुझ जाने से
अब चारो ओर अंधेरा छाई

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और नमन

नोट : उपरोक्त आलेख हिंदुस्तान के वरीय संवाददाता नीलेश कुमार के फेसबुक वाल से लिया गया है।