नवगछिया : अनंतात्मानंद आशीषआनंद जी महाराज उर्फ स्फोटाचार्य जी महाराज ने कहा कि मनुष्य आजीवन छात्र ही रहता है और जो जीवन पर्यन्त छात्र बन कर नहीं रह सकता वह जीवन हेतु पात्र नहीं बन पाता है। जिसने सीखने की आदत छोड़ दी समझो जीवन ने उसे वहीं छोड़ दिया ।

ज्ञान बड़े से मिले या छोटे के से मिले अथवा संसार के अंतिम कतार में खड़े मानव से मिले, वह हमेशा जीवन का अंग और पथ प्रदर्शक ही बनता है। परन्तु, जिसमें ज्ञानी होने का दम्भ और अहंकार होता है उसका नाश अवश्यमभावी हो जाता है।

ब्रह्मज्ञानी उद्धव जी को भी अनपढ़ गोपियों से ज्ञान प्राप्त हुआ जिससे उनका जीवन चरितार्थ और कृतज्ञ हुआ। परन्तु, यदि ज्ञान लेकर उसे जीवन में धारण न किया गया तो वह वैसा ही अभागा होता हे जैसे एक धनी का कंजूसी वश भूखे रहना तथा वास्तविक ज्ञान से वंचित ही रह जाता है। इस प्रकार ज्ञान अथवा शिक्षा का हमारे जीवन में तभी महत्व रहता है जब उसे जीने का प्रयत्न पूरे दिल से किया जाय, अन्यथा हमारे मष्तिष्क में उस ज्ञान का महत्व कूड़े के अलावा और कुछ नहीं ।

अत: जीवन भर मनुष्य को सीखने की जिज्ञासा और उसे जीने की अभिलाषा ही मनुष्य को जीवन की पात्रता से अभिभूत कराती है।

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