वट सावित्री की पूजा इस वर्ष 22 मई को है। इसी दिन अमावस्या की तिथि भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं।

हिंदू आस्था के अनुसार बरगद का वृक्ष भी पूजनीय है, लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन के कारण अन्य जीवनशैली की तरह वट सावित्री व्रत पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा। पूजन सामग्री से लेकर नए वस्त्रों तक की किल्लत है। इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं और उपवास रखकर व्रत करतीं हैं। पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।

अमूमन वट वृक्ष के पास पूजा के दौरान काफी संख्या में भीड़ जुट जाती है। ऐसे में यहां सोशल डिस्टेसिंग भी एक मुद्दा होगा। खड़ेश्वरी मंदिर के पुजारी राकेश पांडेय बतातें है कि अमावस्या के दिन व्रत रखने की प्रथा है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ सावित्री सत्यवान की पौराणिक कथा को भी सुना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा।

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वट सावित्री के लिए बाजार में आए पंखे और डलिया:

वट सावित्री पूजा में बांस के बने पंखे और डलिया का विशेष महत्व है। इस व्रत में महज चार दिन ही बचे हैं। इसलिए बाजार में बांस से बने पंखे व डलिया उतार दिए गए हैं। पुराना बाजार पानी टंकी के पास सूप और डलिया बेचने वाले हनीफ बताते हैं कि इस बार रंगीन हाथ पंखा आया है। इसकी कीमत 15 रुपए है। सादे पंखे 10 रुपए में बिक रहे हैं।