मारवाड़ी समाज की ओर से हाेली के 8 दिन बाद होने वाली शीतला माता की होने वाली पूजा की तैयारी रविवार को शीतला सप्तमी से शुरू हो गई। सोमवार को अष्टमी पर शीतला माता की विशेष पूजा होगी। भक्त माता को बासी अाैर ठंडे भाेजन का भाेग लगाएंगे। इसी के साथ माता की यह विशेष पूजा संपन्न हो जाएगी। शीतला माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं माता से रोगों का नाश और परिवार की सुख-समृद्धि की मंगल कामना करतीं हैं। इन महिला भक्तों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल प्रदान करती हैं। इस पर्व को बसिया पर्व कहते हैं। इस दिन बासी भोजन किया जाता है।
जानें क्या है

महात्म्य

स्कंद पुराण में माता शीतला का वर्णन है, जिसमें उन्हें चेचक रोग की देवी बताया गया है। उनके स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया गया है कि माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं। वे गर्दभ की सवारी किए हुए हैं। शीतला माता के साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता व रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक व रोगाणुनाशक जल है।

शीतला माता की कथा से समझें ठंडा-बासी भोजन के भोग और पूजा का क्या है महत्व

मान्यता है कि एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गांव में आईं और देखा कि इस गांव में मेरा मंदिर भी नहीं है, ना मेरी पूजा हाेती है। माता शीतला गांव की गलियों में घूम रही थीं, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा, जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड़ गए। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी। माता गांव में इधर-उधर भागकर चिल्लाने लगीं अरे मैं जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी मदद करो।

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लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नहीं की। वहीं, अपने घर के बाहर एक कुम्हारन (महिला) बैठी थी। उस महिला ने देखा कि अरे यह बूढ़ी माई तो बहुत जल गई हैं। इनके पूरे शरीर में तपन है। शरीर में फफोले पड़ गए हैं। यह तपन सहन नहीं कर पा रही हैं। तब उस महिला ने कहा मां तू यहां आकार बैठ जा। महिला ने उस बूढ़ी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली मां मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है, थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढ़ी माई ने ठंडी बाजरे की रोटी, राबड़ी और दही खाया तो उनके शरीर को ठंडक मिली।

ऋतु परिवर्तन का संकेत देता है पर्व

राणी सती मंदिर के पुजारी मन्नु शर्मा ने बताया यह पर्व ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। इसके बाद से ग्रीष्म ऋतु की शुरुअात हाेती है। ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। माता को ठंडी चीजें प्रिय हैं।

अष्टमी को घर में न चूल्हा जलता है और न भोजन बनता है

अष्टमी के दिन घर में न ही चूल्हा जलाया जाता है और न ही भोजन बनता है। सप्तमी को भोजन बनाकर रख दिया जाता है। गुड़-चीनी से बना गुलगुला, मीठा भात, फीका भात, बाजरे की रोटी बनती है। फिर उसे मिट्टी के र्वतन कुंडवारा भरा जाता है। अष्टमी को माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। बासी ही खाया जाता है।