लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ आज रविवार (11 नवंबर) से शुरू होगा। छठ घाटों, बाजारों, घरों में पर्व से जुड़े गीत बजने से माहौल भक्तिमय होने लगा है। घाटों पर एक ओर साफ-सफाई हो रही है तो दूसरी ओर बाजारों में पूजन सामग्री की दुकानें सजने लगी हैं।

छठव्रती महिलाएं 12 नवंबर (सोमवार) को खरना करेंगी। भगवान भास्कर को 13 नवंबर (मंगलवार) को सायंकालीन अर्घ्य और 14 नवंबर (बुधवार) को सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा। मान्यता है कि भगवान सूर्य बुद्धि व आरोग्य के देव हैं। इनकी अराधना से बुद्धि-विवेक और धन-धान्य के अलावा कुष्ठ व चर्म रोग सहित अन्य असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है।

कद्दू-भात रविवार को
रविवार को नहाय-खाय है। इस अवसर पर सुविधा के अनुसार छठ व्रत करने वाली महिला-पुरुष गंगा स्नान या अन्य जल श्रोतों में स्नान कर सुबह में कद्दू-भात बनाते हैं। अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी के अलावा अन्य सब्जी का भोग लगाया जाता है।

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खरना सोमवार को, मंगलवार को सायंकालीन अर्घ्य
पंडित विजयानंद शास्त्री ने बताया कि 12 नवंबर को घरों के अलावा गंगा घाटों पर भी व्रती स्नान करके खरना का प्रसाद गुड़-चावल की खीर और रोटी तैयार करेंगे। व्रती भगवान सूर्य को भोग लगाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करेंगी। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।

चूल्हे पर आम की लकड़ी से पकता है प्रसाद
छठ पर्व के दौरान पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसलिए व्रती महापर्व के प्रसाद को पकाने के लिए मिट्टी के चूल्हे प्रयोग करते हैं। कुछ जगहों पर लोग नई ईंट के अस्थाई चूल्हे पर भी प्रसाद पकाते हैं। वहीं जलावन के रूप में आम की लकड़ी या अमाठी का प्रयोग होता हैं।

छठ महापर्व का अनुष्ठान
11 नवंबर : नहाय-खाय (कद्दू-भात)
12 नवंबर : खरना (रसिया-पूरी का प्रसाद ग्रहण)
13 नवंबर : संध्या कालीन अर्घ्य
14 नवंबर : प्रात:कालीन अर्घ्य