किसी का शौक उसे खिलाड़ी बनाता है, तो किसी की जरूरतें मैदान तक खींच लाती है. बिहार के निवासी ओड़िशा की ओर से खेलनेवाले क्रिकेटर पप्पू राय की कहानी कुछ ऐसी ही है. बचपन में माता-पिता खो गया. चाचा-चाची ने संभाला, तो युवा अवस्था में चाचा का भी निधन हो गया. पप्पू को खाने के लाले पड़ गये. दो जून की रोटी के लिए क्रिकेट खेलना शुरू किया था और अब उन्हें देवधर ट्रॉफी के लिए भारत-सी टीम में चुना गया है. वह टीम इंडिया के क्रिकेटर अंजिक्य रहाणे के साथ खेलेंगे.

यह टूर्नामेंट 23 अक्तूबर से दिल्ली में शुरू होगा. इसमें खेलने के लिए चुने गये कोलकाता के इस लड़के की कहानी काफी दर्दनाक है. पप्पू ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था.

अपने नये राज्य ओड़िशा की तरफ से विजय हजारे ट्रॉफी में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद देवधर ट्रॉफी के लिए चुने गये पप्पू ने अपने पुराने दिनों को याद कियास जब हर विकेट का मतलब होता था कि उन्हें दोपहर और रात का भरपेट खाना मिलेगा. उन्होंने मुश्किल दिनों की याद करते हुए बताया कि भैया लोग बुलाते थे और बोलते थे कि बॉल डालेगा, तो खाना खिलाऊंगा और हर विकेट का 10 रुपये देते थे. कोलकाता के पिकनिक गार्डन में किराये पर रहने वाले पप्पू ने कहा कि माता-पिता को कभी देखा नहीं, कभी गांव नहीं गया, मैंने उनके बारे में सिर्फ सुना है.

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पप्पू बताते है कि काश कि वे आज मुझे भारत-सी की तरफ से खेलते हुए देखने के लिए जीवित होते. मैं कल पूरी रात नहीं सो पाया और रोता रहा. मुझे लगता है कि पिछले कई साल की मेरी कड़ी मेहनत का अब मुझे फल मिल रहा है.

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माता-पिता की मौत के बाद पप्पू के चाचा और चाची उनकी देखभाल करने लगे, लेकिन जल्द ही उनके मजदूर चाचा भी चल बसे. इसके बाद इस 15 वर्षीय किशोर के लिए एक समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया. लेकिन क्रिकेट से उन्हें नया जीवन मिला.

उन्होंने पहले तेज गेंदबाज के रूप में शुरुआत की, लेकिन हावड़ा क्रिकेट अकादमी के कोच सुजीत साहा ने उन्हें बायें हाथ से स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी.

वह 2011 में बंगाल क्रिकेट संघ की सेकेंड डिवीजन लीग में सर्वाधिक विकेट लेनेवाले गेंदबाज थे. उन्होंने तब डलहौजी की तरफ से 50 विकेट लिये थे. लेकिन तब इरेश सक्सेना बंगाल की तरफ से खेला करते थे और बाद में प्रज्ञान ओझा के आने से उन्हें बंगाल टीम में जगह नहीं मिली.
भोजन और घर तलाश में पप्पू भुवनेश्वर से 100 किमी उत्तर पूर्व में स्थित जाजपुर आ गये. पप्पू ने कहा कि मेरे दोस्त (मुजाकिर अली खान और आसिफ इकबाल खान) जिनसे, मैं यहां मिला, उन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझे भोजन और छत मुहैया करायेंगे. इस तरह से ओड़िशा मेरा घर बन गया.

पप्पू ने 2015 में ओडिशा अंडर-15 टीम में जगह मिली. तीन साल बाद पप्पू सीनियर टीम में पहुंच गये और उन्होंने ओडिशा की तरफ से लिस्ट ए के आठ मैचों में 14 विकेट झटके. अब वह देवधर ट्रॉफी में खेलने के लिए उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि मुझे मौका मिलेगा और मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा, इससे मुझे काफी कुछ सीखने को मिलेगा.

क्रिकेट खेलने के दौरान स्पिनर पप्पू की गेंदबाजी से तय होता था कि उनके पेट की भूख मिटेगी या नहीं. इस 23 वर्षीय गेंदबाज को देवधर ट्रॉफी के लिए अंजिक्य रहाणे की अगुआई वाली भारत सी टीम में चुना गया है,

माता-पिता छपरा के खजूरी गांव के रहनेवाले थे, कमाने के लिए गये थे बंगाल : उनके माता- पिता बिहार के रहने वाले थे, जो कमाने के लिए बंगाल आ गये थे. पप्पू ने अपने पिता जमादार राय और पार्वती देवी को तभी गंवा दिया था, जबकि वह नवजात थे. उनके पिता ट्रक ड्राइवर थे और दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ, जबकि उनकी मां लंबी बीमारी के बाद चल बसी थीं. पप्पू के माता-पिता बिहार के सारण जिले में छपरा से 41 किमी दूर स्थित खजूरी गांव के रहने वाले थे तथा काम के लिए कोलकाता आ गये थे.