बिहार पावर सेक्टर में प्राइवेटाइजेशन के साथ रेगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष-सदस्यों की नियुक्ति के मौजूदा प्रावधानों में बदलाव पर राज्य सरकार ने आपत्ति की है। इसके लिए राज्य सरकार ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को विधिवत पत्र भेजा है। मंत्रालय ने विद्युत अधिनियम में संशोधन को लेकर ड्राफ्ट प्लान बिहार को भेजा था। इस पर उससे मंतव्य मांगा गया था।

बिहार ने केन्द्र के नए विद्युत अधिनियम के कई प्रावधानों का विरोध किया है। काफी मंथन के बाद ऊर्जा विभाग ने पिछले दिनों पत्र को अंतिम रूप दिया था। ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि जो प्रावधान राज्यहित में नहीं थे, उस पर बिहार की आपत्ति दर्ज की है। प्राइवेटाइजेशन जैसे विषयों पर हम पहले भी अपनी आपत्ति कर चुके हैं। अब कई मुद्दों पर हमारे बीच सहमित नहीं है। बिजली समवर्ती सूची में है, इसमें केन्द्र और राज्य दोनों की संयुक्त जिम्मेवारी है। एेसे में राज्य की बात सुनी जानी चाहिए।

अहम मसलाें का फैसला केंद्र पर छाेड़ने के पक्ष में भी नहीं

अहम मसलाें पर सेन्ट्रल कमेटी द्वारा विचार करना भी बिहार काे मंजूर नहीं है। यदि कोई मामला रेगुलेटरी कमीशन के समक्ष आता है, जिसमें बिजली कंपनी भी पार्टी होती है तो कमीशन दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला देता है। लेकिन नए प्रावधान में यह अधिकार केन्द्रीय कमेटी के पास होगा। राज्य का मानना है कि इससे उसका अधिकार कम होगा। यही नहीं यह प्रक्रिया भी लंबी हो सकेगी। रेगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार केन्द्रीय कमेटी के पास ही होगा। इस कमेटी में राज्यों के दो मुख्य सचिव भी सदस्य होंगे। यह क्रम से राज्यों को मिलेगा। संभव है जब बिहार में कमीशन के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति का मामला आए तो केन्द्रीय कमेटी में बिहार का सदस्य भी न हो। एेसे में बिहार का हित प्रभावित हाे सकता है। इस समय जो प्रावधान हैं, उसमें कमेटी के अध्यक्ष-सदस्य की नियुक्ति राज्य स्तर पर होती है। जिनका भी इसमें चयन होता है, वे राज्य के लिए सकारात्मक और तटस्थ भाव रखते हैं। नए प्रावधान में केन्द्रीय कमेटी चयन कर राज्य को सूचित करेगी। संभव है एेसे सदस्य का चयन हो जो राज्य से जुड़े न हों। एेसे में टकराव की स्थिति आ सकती है। बिहार इसे राज्य के पावर कट से जोड़ कर देख रहा है।

प्राइवेटाइजेशन के खिलाफ बिहार में हुई थी हड़ताल

पिछले दिनों बिहार में प्राइवेटाइजेशन को लेकर बिजलीकर्मियों ने बड़ा आंदोलन किया था। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बिजलीकर्मियों ने आंदोलन वापस लिया। बिजली कंपनी ने कर्मचारियों को आश्वस्त किया था कि किसी सूरत में वह प्राइवेटाइजेशन का समर्थन नहीं करेगी। कंपनी जानती है कि यदि फिर से यह मामला उठा तो परेशानी बढ़ सकती है।

खाते में सब्सिडी पर भी मतभेद

बिहार की असहमति केन्द्र द्वारा कान्ट्रैक्ट अथॉरिटी बनाने और डीबीटी (सीधे खाते में सब्सिडी भेजना) की प्रक्रिया पर भी है। रसाेई गैस के पैटर्न पर सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने से राज्य सरकार द्वारा दिये जाने वाले रिबेट मिलने में लोगों को परेशानी होगी। राज्य सरकार के विलंब से भुगतान का खामियाजा आखिर उपभोक्ता क्यों भुगते?

क्यों बदलाव चाहता है केन्द्र

पावर सेक्टर संविधान की समवर्ती सूची में है। इसमें केन्द्र और राज्य दोनों का अधिकार होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब केन्द्र पावर सेक्टर पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। यही नहीं विवादास्पद विषयों पर वह निर्णय करने की स्थिति चाहता है। भविष्य में पावर सेक्टर में कई और बदलाव होने हैं। एेसे में वह ताकतवर हक चाहता है।

बिहार ने सब लाइसेंसिंग को लेकर सवाल उठाए हैं। उसका मानना है कि यह प्राइवेटाइजेशन का रास्ता खोलेगा। एेसे उसने केन्द्र से इस टर्मिनोलॉजी को पूरी तरह परिभाषित करने का भी अनुरोध किया है। उसका कहना है कि आखिर अधिनियम में इसका प्रयोग किस रूप में किया जाएगा? यदि यह पावर सेक्टर में निजी क्षेत्र के लिए द्वार खोलने का रास्ता है तो बिहार इसका समर्थन नहीं कर सकता।