नवगछिया : नवगछिया की ऐतिहासिक खिरनय नदी को अतिक्रमण मुक्त कराने को लेकर प्रशासन स्तर से कार्रवाई शुरू कर दी गई है. नदी को अतिक्रमण मुक्त करने को लेकर नवगछिया अंचल स्तर से नापी करवाने का कार्य पिछले आरंभ कर दिया गया है. अंचल स्तर से खिरनय नदी की जा रही नापी में अबतक 17 व्यक्ति जिनके द्वारा खिरनय नदी का अतिक्रमण किया गया है उसे चिन्हित भी कर लिया गया हैं. नवगछिया के अंचलाधिकारी विश्वास आनंद ने बताया कि खिरनय नदी का एरिया काफी बड़ा है. जिसकी नापी के कार्य में नवगछिया के अमीन के अलावा नारायणपुर के अमीन के साथ नवगछिया के हल्का कर्मचारी मो शाहबुद्दीन को लगाया गया है.

नापी में अबतक 17 व्यक्ति जिनके द्वारा अतिक्रमण किया गया है उसे चिन्हित कर लिया गया है. एक सप्ताह के अंदर अंदर नापी की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी और जिन लोगों द्वारा अतिक्रमण किया गया है वैसे लोगो को भी चिन्हित कर लिया जाएगा. उन्होंने बताया कि जिन लोगो के द्वारा नदी की जमीन का अतिक्रमण किया गया है उन लोगो को चिन्हित करने के उपरांत अतिक्रमण एक्ट के तहत नोटिस किया जाएगा. उन्होंने कहा कि अगले सप्ताह से नोटिस की प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी. मालूम हो कि नवगछिया की खिरनय नदी का बृहत पैमाने पर अतिक्रमण कर लिया गया हैं और गंदे पानी व कूड़ा डंपिंग किए जाने से नदी के स्तित्व पर संकट बना हुआ है.

– धार्मिक लोक गाथाओ में भी हैं खिरनय नदी का जिक्र, कई ऐतिहासिक प्रमाण हैं जो इस नदी की ऐतिहासिकता को प्रमाणिक रूप देता है

आज भले ही यह नदी अपार गंदगी के कारण अस्पृश्य हो गयी हो लेकिन जब इस नदी का आंचल स्वच्छ और धवल था तो इसी नदी के कारण यहां पर मानवीय सभ्यता का सृजन हुआ था. कई ऐतिहासिक प्रमाण हैं जो इस नदी की ऐतिहासिकता को प्रमाणिक रूप देता है. लोकगाथा बिहुला बिषहरी में सती बिहुला का मायका गंगा पार का उजानी गांव में बताया गया है. वर्तमान में इस नदी से उजानी गांव की दूरी महज एक किलोमीटर है.

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बिहुला विषहरी की लोक गाथा में सोने की नाव (स्वर्णजड़ित नाव) का भी जिक्र है लोकगाथा को प्रमाणिक मानें तो यह कहा जा सकता है कि कभी खिरनय की ही वेगवती धाराओं पर बिहुला की नाव अटखेलियां करती होंगी. जानकार बताते हैं कि कालांतर में यह नदी सिकुड़ गयी है. नदियों के जानकार की माने तो बहुत पहले यह नदी कोसी की मुख्य धारा थी, कालांतर में नदी जब कोसी की उपधारा बन गयी तो इसे खिरनय नाम दिया गया.

वर्ष 1960 से 1970 के दशक में बांध निर्माण के कारण इस नदी का संपर्क भंग होने शुरू हो गया और 1990 के दशक में जब त्रिमुहान – कुर्सेला बांध का निर्माण पूरा हो गया तो इस नदी का कोसी से पूरी तरह संपर्क भंग हो गया. इतिहासकारों की मानें तो एक समय ऐसा था जब खिरनय के कारण नवगछिया को लोग जानते थे. इसका कारण यह था कि खिरनय नदी इलाके का प्रमुख व्यवसायिक और यातायात का केंद्र था। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. नदी के तटों नंदलाल घाट, ठाकुरबाड़ी घाट, मील टोला घाट का नाम आज भी प्रचलित है जबकि नंदलाल घाट का जीर्ण शीर्ण सूचना बोर्ड आज भी देखा जा सकता है.