नवगछिया : कोसी कटाव के मुहाने पर आ चुके गुवारीडीह में पुरातात्विक महत्व वाले अवशेष बिखरे पड़े हैं लेकिन कोई इसे सहेजने वाला नहीं है. गुवारीडीह अपनी कहानी को कहने का प्रयास तो कर रहा है लेकिन इसे संजीदगी से सुनने वाला कोई नहीं है. गुवारीडीह पहुंचते ही जब आप कोसी कटाव का मुआयना करेंगे तो आपको जल विलीन होते कई अदभुद चीजें सहजता से दिखायी देंगी. कुछ सामनों को ग्रामीण घर ले आते हैं तो कुछ सामान अपनी कहानी के साथ नदी के गर्त में समा जाता है. एक समय गुवारीडीह 25 एकड़ तक फैला हुआ था लेकिन वर्तमान में गुवारीडीह एक चौथाई ही बच गया है. आने वाले समय में गुवारीडीह का अस्तित्व जलविलीन हो जाये तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. गुवारीडीह में दिलचस्पी लेने वाले ग्रामीण अविनाश चाहते हैं कि गुवारीडीह की सभ्यता की कहानी दुनियां के सामने आनी चाहिए इसलिए वे अपना काम काज छोड़ कर अवशेषों को ढ़ूढ़ने में लगे रहते हैं.
ग्रामीण आबादी से डेढ़ किलोमीटर दूर है गुवारीडीह

ग्रामीण बताते हैं कि गुवारीडीह 25 एकड़ में फैला एक टीला था जो अब एक चौथाई ही रह गया है. गुवारीडीह अभी भी पूरी तरह से जगलों से भरा है. पूरे टीले के उपरी सतह का भ्रमण वर्तमान में सभव है. यह जयरामपुर गांव की आबादी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है. ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 50 वर्ष पहले ही कोसी नदी गुवारीडीह से लगभग एक किलोमीटर दूर हो कर बहती थी. गुवारीडीह में एक वन देवी कामा माता का पुरातन मंदिर हुआ करता था जो पूरी तरह से जलविलीन हो गया है. इतिहासकारों ने अनुमान लगाते हुए कहा कि गुवारीडीह एक ऐसा उंचा टीला था जो प्रकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रहा होगा. इसलिए लोगों ने यहां एक छोटी सी बस्ती का सृजन किया होगा. यह नदी मार्ग से आने जाने वालों के लिए एक ठहराव का काम करता होगा. चूकि यह नदी के किनारे है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय चंपा जैसे आधुनिक नगरीय सभ्यता गुवारीडीह से ही प्रेरित हो. इतिहास कारों ने बताया कि गुवारीडीह की अगर खोदाई हो तो नवगछिया के वैभवशाली इतिहास की कई चौकाउ बातें दुनियां के सामने आयेंगी.

एकत्रित अवशेषों को टीम के सदस्यों ने अलग अलग काल खंडों में सजाया

रविवार को इतिहासकारों और पुरातत्वविदों की टीम ने गुवारीडीह के अवशेषों को देखते ही आश्चर्य व्यक्त किया और सभी सामनों को काल खंडों के अनुसार अलग अलग सजाया. मिले सामनों को अलग अलग छ: भागों में विभक्त किया गया. इसमें एक हजार ईपू यानी तीन हजार वर्ष पहले के सामनों में सिक्के और मिट्टी के कई तरह के मिट्टी के बर्तनों को शामिल किया गया. 2400 वर्ष पहले के अनुमानिक अवशेषों में पत्थर के सामान, पत्थर का मुहर और मिट्टी के सामान दोनों हैं. ये अवशेष िद्वतीय नगरीकरण के माने जा रहे हैं. चार ईपू में अधिकांश सामान पत्थर के हैं इसमें अलग किये गये अवशेष गुप्त काल के बताये जा रहे हैं. दूसरी तरफ दो हजार वर्ष पुराने सामानों जैसे ईंट और अन्य तरह के मिट्टी के औजारों को शामिल किया गया. ये कुषाण कालीन बताये जा रहे हैं. जनवरों के हड्डियों और दांतों को भी इतिहासकारों ने अलग किया है. विद्वानों ने बताया कि कार्बन पद्धति से उक्त हड्डियों और दांतों के जीवंत काल का पता लगाया जा सकता है.

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अवशेषों को संग्रहालय में सहेजने की पहल शुरू

तिलकामांझी भागलपुर विश्व विद्यालय के प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागध्यक्ष प्रो बिहारी लाल चौधरी ने बताया कि सामानों को एक प्रक्रिया के बाद इसे विभाग के म्युजियम में भी रखवाया जा सकता है. जहां से शोधार्थी के साथ साथ इन अवशेषों में दिलचस्पी रखने वाले लोग देख सकेंगे और अध्ययन कर सकेंगे. दूसरी तरफ गुवारीडीह की खोदाई करने की आवश्यकता है इसके लिए सबसे पहले ग्रामीणों को तैयार होना होगा. सामानों का संग्रह करने वाले अविनाश कुमार चौधरी ने कहा कि वे अवशेषों को म्युजियम में रखवाने के लिए पूरी प्रक्रिया करेंगे. मौके पर अविनाश को अवशेषों के रख रखाव के बारे में भी बताया गया.

– कहा मिले अवशेष अलग अलग समय है, कुछ 12 सौ साल पुराने तो कुछ तीन हजार वर्ष से भी पुराने हैं

नवगछिया  : ऐतिहासिक बिहपुर के जयरामपुर गांव के गुवारीडीह में मिले पुरातात्विक अवशेषों की प्रमाणिकता पर पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने मुहर लगा दी है. मालूम हो कि प्रभात खबर ने गुवारीडीह में मिले पुरातात्विक अवशेषों की खबर को एक मुहिम का रूप देते हुए लगातार प्रकाशित किया था. छपी खबरों के आलोक में भागलपुर के पुराविदों एवं इतिहासकारों की टीम ने गुवारीडीह में कोसी तट पर स्थित करीब 25 फीट ऊंचे टिल्हे से मिले प्राचीन पुरातात्विक सामग्रियों का अन्वेषण तथा अध्ययन किया. इस दल में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ बिहारी लाल चौधरी, एसएम कालेज के पीजी इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ रमन सिन्हा, पूर्व उप जनसंपर्क निदेशक शिव शंकर सिंह पारिजात, डा पवन शेखर, डा दिनेश कुमार व पीजी टूरिज्म विभाग की छात्रा रिंकी कुमारी शामिल थी.

गुवारीडीह में प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों के अध्ययन के उपरांत शोध टीम के सदस्यों ने बताया कि इन सामग्रियां 1000 ईपू की बीआरडब्लू संस्कृति से लेकर द्वितीय नगरीकरण से संबंधित एन पी बी डब्लू काल, पहली शताब्दी के कुषाण कालीन से लेकर 12वीं शताब्दी के टेराकोटा मूर्त्तियों व बर्तनों के टुकड़े तथा ताम्र धातु के टुकड़े, गोपन गुल्ला, सिल-लोढ़ा, हैंडल युक्त बर्तन, चौड़े आकार की ईंटें ((16.1/2×2101/x1 1/2 ईंच) आदि मिले हैं. इतिहासकारों व पुराविदों ने बताया कि गवारीडीह में 1000 ईपू के मिले पुरातात्विक अवशेषों से यह स्पष्ट होता है कि यहां की नगरीय सभ्यता अंग की राजधानी चम्पा से भी पुरानी है. जिसकी निरन्तरता 12 वीं शताब्दी तक रही होगी. विद्वानों ने बताया कि महानगर के रूप में चम्पा का अभ्युदय 6 ठी शताब्दी ईपू में ‌हुआ. अंग का महाजनपद के रूप में आकार लेना एक क्रमिक विकास की परिणति थी. अधिसंख्या में गवारीडीह में बी आर डब्लू काल के पात्रों का पाया जाना अरबन सैटलमेंट के पूर्व की स्थिति को इंगित करता है.

छठी शताब्दी ईपू में जब लोहे के उपयोग के कारण अधिशेष उत्पादन के कारण नगरों का विकास प्रारंभ हुआ, जिससे चम्पा के अभ्युदय की पृष्ठभूमि बनी. इतिहासकारों व पुराविदों की टीम ने इस स्थल की विस्तृत खुदाई एवं प्राप्त पुरा सामग्रियों के संरक्षण के साथ कोशी के कटाव में तेजी से विलीन होते गवारीडीह टिल्हे को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया. टीम के सभी सदस्यों ने गुवारीडीह से मिल रहे अवशेषों को जनजन तक पहुंचाने के लिए प्रभात खबर को धन्यवाद दिया. इस अवसर पर गुवारीडीह में मिल रहे अवशेषों को एकत्र करने वाले अविनाश कुमार चौधरी, पैक्स अध्यक्ष विकास कुमार, शैलेंद्र प्रसाद कुमार, सुधांशु कुमार कुक्कू, गोपाल पंडित, विशाल कुमार झा, कौशल सिंह, शिवशंकर ठाकुर, अखिलेश झा, पियुष झा, अंकित कुमार, सोनू यादव, मनीष कुमार, बासुकी झा भी मौजूद थे