खरीक : ध्रुवगंज दुर्गा मंदिर नया और पुराना बुढ़िया माय के दरबार में सच्चे मन से मां दुर्गा की उपासना करने वाले भक्तों की मुराद पूरी होती है. ध्रुवगंज पुरानी दुर्गा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध बुढ़िया माय दुर्गा मंदिर इलाके का सबसे पुराना शक्तिशाली मंदिरों में से एक है. मंदिर का इतिहास 500 साल से भी अधिक पुराना है इस लिए पुरानी दुर्गा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

भक्तों की मुराद होती है पूरी

ध्रुव गंज पुरानी दुर्गा मंदिर की खासियत है कि सच्चे मन से पूजा करने आए भक्तों की हर मुराद को माता पूरा करती है जिन भक्तों पर माता रूठ जाती है ऐसे भक्तों को माता का कोप भाजन भी होना होता है.गांव के लोग बताते हैं कि गांव में कई ऐसे उदाहरण हैं जिससे माता की शक्ति का लोगों को एहसास हुआ है अभी भी कुछ लोग जीवित हैं जो माता की महिमा का गान करते थकते नहीं. 7 दिन गंगा नदी में रहने के बाद ध्रुवगंज गांव की शिताबी मिस्त्री को माता का मिला था 500 साल पुराना वह सिंहासन और अद्भुत प्रतिमा आज भी ध्रुवगंज के सिताबी मिस्त्री के वंशज कार्य शर्मा के घर विराजमान है.

मंदिर का विधान है कि माता की पूजा पहले शिताबी मिस्त्री के वंशज के घर स्थापित माता की प्रतिमा और सिंहासन की पूजा होती है.उसी प्रकार पहला पशु बलि 500 साल पहले प्राप्त माता की सिंहासन और अद्भुत प्रतिमा के सामने होता है ऐसा किवदंती है कि ऐसा करने से ही माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होती है माता की पूजा-अर्चना वैदिक रीति से होती है. पूजन विधि में भिन्नता हो जाने पर भक्तों को माता का कोप भाजन होना पड़ता है इसका एहसास कई बार भक्तों को हो गया है. इसलिए बड़ी ही सावधानी के साथ माता के दरबार में भक्तों प्रवेश करते हैं और पूरे नियम निष्ठा और श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए पूजा-अर्चना की जाती है. पशुओं की दी जाती है बली खरीक के ध्रुवगंज दुर्गा मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती है पशुओं में पाठा की बलि दी जाती है पहले भैंसा का भी बलि चढ़ता था लेकिन बीते कुछ वर्षों से भैंसा का बली ना देकर भैंसा का कान काट कर छोड़ दिया जाता है.

भक्तों की मुराद माता पूरी कर देती है ऐसे भक्त चढ़ावे के रूप में हर साल पाठा की बलि देते हैं. ध्रुवगंज के वरिष्ठ ग्रामीण कपिल देव राय,वासुकी कुमर, देव लोचन शर्मा, कार्य शर्मा, निरंजन प्रसाद कुमार, उमेश कुमार, राजेंद्र कुमर महंत कुमार वृंदावन कुमार आदि ग्रामीणों का कहना है की ध्रुव गंज दुर्गा मंदिर का इतिहास बहुत ही समृद्ध और वैभवशाली रहा है. मंदिर की उत्पत्ति दैविक है. अपनी शक्ति के बदौलत यह मंदिर बुढ़िया माई के नाम से प्रसिद्ध है से 500 साल पहले सिताबी मिस्त्री के घर गंगा से उत्पन्न सिंहासन स्थापित हुआ बाद के दिनों में अत्यधिक भक्तों के आने के बाद मंदिर का निर्माण कराया गया.

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मंदिर में वैदिक रीति से पूजन किया जाता है आचार्य श्री मंगल ठाकुर जी पूरे नियम निष्ठा के साथ पूजन करते हैं मंदिर में इस बार नवा मानव व्यास और आचार्य मंगल जी के के द्वारा किया जा रहा है रात्रि में भक्तों के लिए अध्यात्मिक धारावाहिक प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया जा रहा है. मंदिर को सजाने में भक्त काफी उत्साहित है. ध्रुव गंज पुरानी दुर्गा मंदिर बुढ़िया माय मंदिर में बाद के वर्षों में कुछ लोगों के व्यवहार से रुष्ट होकर 1953ई.में ध्रुवगंज नया मंदिर का प्रादुर्भाव हुआ. इस मंदिर की महिमा की अलग गाथा है कहा जाता है

ध्रुव गंज दुर्गा मंदिर नया और पुराना दोनों मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से पूजा अर्चना करने आते हैं माता उसकी हर मुराद को पूरी कर देती है दोनों मंदिर में भव्य मेला का आयोजन होता है किसी एक मंदिर के दर्शन के बाद यदि दूसरा मंदिर छूट जाए तो भक्तों का दर्शन अधूरा रह जाता है ऐसी किंवदंती है. ध्रुवगंज नया दुर्गा मंदिर आयोजक मंडल के सदस्य कौशल किशोर कुमर, महेश्वर प्रसाद कुमर, सिद्धू कुमर, ब्रह्मदेव कुमर, सहजानंद कुमर आदि ग्रामीणों ने बताया कि इस बार मंदिर में भक्तों की सुख सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किये गए है.भक्तों की सुरक्षा का चाक चौबंद व्यवस्था किया गया है.