इस साल होने वाली दुर्गापूजा कुछ अलग हटकर होगी। आम तौर पर महालया के दूसरे दिन यानी पितर तर्पण के बाद एकम से नवरात्र देवी पाठ की शुरुआत हो जाती है लेकिन इस साल महालया के एक माह के बाद 17 अक्टूबर से दुर्गापूजा की शुरुआत होगी। विजयीदशमी 26 अक्टूबर हो है। सभी दस दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी।

पंडित अजीत पाण्डेय ने बताया कि हिन्दू शास्त्रों में दुर्गापूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस बार दो अश्विन माह होंगे। एक शुद्ध तो दूसरा पुरुषोत्तम यानी अधिक मास। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिक मास रहेगा। 17 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक शुद्ध आश्विन माह होंगे। इस दौरान ही 17 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मां दुर्गा की जाएगी।

उन्होंने बताया कि बताया कि पितृपक्ष तीन सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर तक शुद्ध आश्विन मास में चलेगा। उसके 30 दिनों के बाद मां दुर्गा की पूजा होगी।

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तीन साल में ऐेसा आता है अंतर

उन्होंने बताया कि भारतीय ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार सूर्य मास और चंद्रमा मास गणना के अनुसार चलता है। अधिक मास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो 32 माह 16 दिन आठ घंटे के अंतर से मलमास का निर्माण होता है।

सूर्य वर्ष 365 दिन 6 घंटे का होता है तथा चंद्र वर्ष 354 का माना जाता है यही 11 दिनों का अंतर तीन साल में एक माह के लिए होता है। जो अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहलाता है।

अधिक मास में शुभ कार्य नहीं होंगे

अधिक मास में सभी शुभ कार्य यज्ञ, विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश आदि नहीं होता है। इस माह का कोई भी देवता नहीं होता है तथा सूर्य की संक्रांति नहीं होने के कारण यह माह मलिन हो जाता है जिसे मलमास कहा जाता है। पंडित सौरभ ने बताया कि दैत्यराज हिरण्यकशियपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण इसी अधिक मास में किये थे तभी से यह पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने व कथा श्रवण करने से 10 गुना अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है।