कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को संपूर्ण भारत में दीपों का त्योहार दीपावली पर्व पूर्ण भक्ति भाव से मनाया जाता है। यह पर्व आध्यात्मिक दृष्टि से साधना एवं उपासना हेतु विशेष महत्व रखता है। इस बारे में त्रिलोक धाम निवासी आचार्य पंडित धमेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि दस महाविद्यालय में मां भगवती काली, तारा और माता लक्ष्मी जी का पाद्रुभांव भी इसी दिवस को हुआ था। धर्म शास्त्र अनुसार इन तीनों देवियों की उपासना से समस्त प्रकार की सिद्धियां सुगमता के साथ प्रदान हो जाती है। इस दिवस को कमला जयंती के नाम से भी जाना जाता है। लक्ष्मी उपासकों को इस दिन की प्रतीक्षा रहती है।

इस दिन सायंकाल प्रदोष समय में लक्ष्मी जी की पूजन कर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। इस दिन महाकाव्य बाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस के अनुसार ऐसी मान्यता है कि सतयुग में जब मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने 14 वर्षों के बनवास काट कर रावण वध के उपरांत लंका पर विजय प्राप्त करते हुए अयोध्या वापस आए, पर समस्त अयोध्या वासियों ने प्रभु श्री राम के अयोध्या वापस आने की खुशी में दीपक जलाकर संपूर्ण नगर को जगमग आ दिया था। तब से लेकर आज तक दीपावली पर्व पर दीपक जलाकर पूरे देश में मनाया जाता है। आचार्य ने बताया कि इस दिन घर की साफ सफाई कर के सायंकाल में दीपक दान करना अति शुभ माना गया है। 14 नवंबर शनिवार को सायन 5:22 से रात के 8:06 तक शुभ मुहूर्त है। जिसमें पूजन करने से रिद्धि सिद्धि धन ध्यान एवं लक्ष्मी गणेश की कृपा प्राप्त के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

दीपावाली की रात भक्तों के घरों में पहुंचती हैं मा लक्ष्मी

आचार्य ने बताया कि ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि दीपावली की अर्ध रात्रि के समय महालक्ष्मी सद गृहस्थों के घर में जहां-तहां विचरण करती हैं। इसलिए इस दिन अपने घर को भी सभी प्रकार से स्वच्छ शुद्ध एवं सुशोभित कर मनाने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होकर वहां निवास करने लगती है। इस रात्रि को महा निशा के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि मार्कंडेय पुराण के सप्तशती खंड में मां काली का वर्णन है। दक्षिण दिशा में रहने वाले सूर्यपुत्र भगवती काली का नाम स्मरण नाम मात्र से ही भाग जाते हैं। इसलिए काली को दक्षिण काली या दक्षिण कालिका भी कहा जाता है। इन्हीं का एक नाम महाविद्या है। इनकी उपासना से सभी प्रकार के विघ्न नष्ट हो जाते हैं। इस दिन लक्ष्मी पूजन के अतिरिक्त भगवान गणेश, महाकाली, माता सरस्वती, तुला, बही खाते, लेखनी दवात एवं कुबेर का पूजन किया जाता है। यह सभी पूजन प्रदोष काल एवं स्थिर लग्न में शुभ होते हैं और घर में संवृद्धि आती है। इसके साथ ही इस दिन महालक्ष्मी की कथा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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