कार्तिक पूर्णिमा पर आज गंगा के विभिन्न घाटों पर हजारों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। इस बार कृतिका नक्षत्र में कार्तिक पूर्णिमा का योग बन रहा है। इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा, आदित्य ने महापुनीत पर्व प्रमाणित किया है और चन्द्रायन व्रत की समाप्ति भी इसी तिथि को होती है। इस दिन गंगा स्नान तथा सायंकाल में दीपदान का विशेष महत्व है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। इसी दिन गंगा-गंडक के संगम पर गज और ग्राह का युद्ध हुआ था। गज की करूणामयी पुकार सुनकर विष्णु ने ग्राह का संघार कर गज की रक्षा की थी।

इन्हीं कारणों से हिन्दुओं के लिए पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा विशेष स्थान है। पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से मनुष्य के सभी तरह के पापों का क्षय होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। इस दिन सिख धर्म से जुड़े लोग सुबह स्नान कर गुरुद्वारे में जाकर गुरु नानक देव की के वचन सुनते हैं और धर्म के रास्ते पर चलने का प्रण लेते हैं। इस दिन शाम को सिख लोग अपनी श्रृद्धा अनुसार लोगों को भोजन कराते हैं। पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले गुरु नानक देव जी के जन्म के दिन को गुरु पर्व नाम से भी जाना जाता है।

आज के दिन भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्यावतार, गंगा-गंडक के संगम पर गज और ग्राह का हुआ था युद्ध

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और गंगा स्नान की पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी वजह से इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा की शाम भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था। साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद किनारे दीपदान करने से दस यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। सायंकाल देव-मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल वृक्ष, तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगा जी के जल में दीपदान किए जाते हैं। इस तिथि में ब्रह्मणों को दान देने, भोजन कराने, गरीबों दान को दान देने, क्षीरदान करने, शिक्षा दान करने के साथ बड़ों से आशीष लेना चाहिए।

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कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा-विधि

स्नान के दौरान इस मंत्र का करें जाप

नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।

सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।

कार्तिक पूर्णिमा में करें दीपदान

मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा को दीप जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है। घर में धन, यश और कीर्ति आती है। इसीलिए इस दिन लोग विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल, चौराहे या फिर नदी किनारे बड़ा दिया जलाते हैं। दीप खासकर मंदिरों से जलाए जाते हैं। इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है। दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करें।

देव दीपावली की भी मान्यता

कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन देव दीपावली मनाई जाती है। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार में जन्म लेने और भगवान शिव द्वारा राक्षस तारकासुर और उनके पुत्रों का वध करने की वजह से मंदिरों में ढेरों दीपक जलाए जाते हैं।

यह भी जानें-कार्तिक पूर्णिमा की कथा

ज्योतिषाचार्य पं. प्रो. डॉ. सदानंद झा ने बताया कि पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके।

एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। इसके बाद तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा