मोबाइल रेडिएशन न सिर्फ पशु-पक्षियों बल्कि इंसानी जान का भी दुश्मन है। टेक्नोलॉजी दिग्गजों का कहना है कि जिस स्मार्ट गैजेट से यूजर एक मिनट के लिए भी दूर नहीं रह सकते, असल में वो एक साइलेंट किलर है। मोबाइल रेडिएशन से मानसिक अवसाद समेत कई घातक बीमारियों होने की आशंका रहती है।

इंडियाज नेशनल स्पेसिफिक एब्जॉर्बशन रेट लिमिट (आईएनएसएआरएल) के अनुसार मोबाइल के रेडिएशन का मानक अधिकतम 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। जबकि चीन समेत कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इसकी परवाह किए बिना धड़ाधड़ अपने स्मार्टफोन भारतीय बाजार में उतार रही हैं।

साइलेंट किलर है मोबाइल रेडिएशन
मिनिस्ट्री ऑफ कम्यूनिकेशन के ‘स्पेसिफिक ऑब्जर्शन रेट’ (सार) के तहत किसी भी स्मार्टफोन, टैबलेट या अन्य स्मार्ट डिवाइस का रेडिएशन 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। शरीर से डिवाइस की 1.5 सेंटीमीटर की दूरी पर भी यह नियम लागू होता है। यदि फोन पर बात करते हुए या जेब में रखे हुए आपका डिवाइस रेडिएशन की इस सीमा को पार करता है, तो यह आपके स्वास्थ और आयु दोनों के लिए खतरनाक है। सेल्युलर टेलीकम्यूनिकेशन एंड इंटरनेट एसोसिएशन के अनुसार सभी मोबाइल हैंडसेट पर रेडिएशन संबंधी जानकारी देनी जरूरी है।

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फोन पर यूं करें मोबाइल रेडिएशन को चेक
अगर यूजर अपने मोबाइल फोन पर रेडिएशन को चेक करना चाहते हैं तो इसके लिए उन्हें अपने मोबाइल से *#07# डायल करना होगा। यह नंबर डायल करते ही मोबाइल स्क्रीन पर रेडिएशन संबंधी जानकारी नजर आ जाएगी। इसमें दो तरह से रेडिएशन के स्तर को दिखाया जाता है। एक ‘हैड’ और दूसरा ‘बॉडी’। हैड यानी फोन पर बात करते हुए मोबाइल रेडिएशन का स्तर क्या है और बॉडी यानी फोन का इस्तेमाल करते हुए या जेब में रखे हुए रेडिएशन का स्तर क्या है। ध्यान रखें कि रेडिएशन की सीमा 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम से ज्यादा न हों।

रेडिएशन से बचने के तरीके
टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों के मुताबिक डिवाइस को रेडिएशन से बिल्कुल मुक्त तो नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ समय के लिए इससे बचा जरूर जा सकता है। उनका कहना है कि फोन को चार्ज पर लगाकर कभी बात न करें। इस वक्त मोबाइल रेडिएशन 10 गुना तक बढ़ जाता है। सिग्नल कमजोर होने या फिर बैटरी डिस्चार्ज होने पर कॉल न करें। इस दौरान भी रेडिएशन लेवल बढ़ जाता है। जरूरत पड़ने पर ईयरफोन या हैडफोन का इस्तेमाल करें। इससे शरीर पर रेडिएशन का इफेक्ट कम पड़ता है।