अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के मार्गदर्शन में नवगछिया सहित कोसी और सीमांचल के किसान नारियल की व्यावसायिक खेती कर सकेंगे। इसका उद्देश्य किसानों को आर्थिक तौर पर उन्नत करना और आमदनी बढ़ाना है।

अखिल भारतीय समन्वित ताड़ परियोजना के तहत बीएयू उद्यान विभाग की वैज्ञानिक डॉ. रूबी रानी ने कहा कि नया प्रभेद इस क्षेत्र की जलवायु के लिए अनुकूल है। नवगछिया सहित कोसी और सीमांचल क्षेत्र के लिए पांच किस्मों को बेहतर पाया गया है। इसमें सखी गोपाल, केरा बस्तर, ईस्ट पोस्ट टॉल, मिलियन और ऑरेंज ड्वार्फ शामिल हैं। शोध में वैज्ञानिक ने अलग-अलग राज्यों से 25 किस्मों को लाकर यहां के परिप्रेक्ष्य में उसका चयन किया है।

व्यावसायिक खेती से दोगुनी होगी आमदनी

विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. फिज़ा अहमद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में किसानों को कम घाटे पर बेहतर मुनाफा हो, इसके लिए नारियल की खेती काफी कारगर सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि नवगछिया सहित कोसी और सीमांचल क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है। यहां नदियों का जाल बिछा हुआ है। वातावरण में नारियल के अनुकूल खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में आद्रता उपलब्ध रहती है। यहां का वातावरण समशीतोष्ण है। इसका किसानों को बेहतर लाभ मिलेगा। उनकी आमदनी बढ़ेगी। 10 वर्षों के शोध में मूल्यांकन के आधार पर जिन पांच किसानों को चयनित किया गया है, वह इस क्षेत्र में नारियल की व्यवसायिक खेती के लिए वरदान बनेगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों को नारियल की व्यावसायिक खेती के लिए जागरूक करेगा। जानकारी हो कि राष्ट्रीय स्तर पर सूबे का कुल नारियल उत्पादन में नौवां स्थान है, लेकिन राष्ट्रीय औसत में बिहार आगे है।

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औषधीय गुणों से भरपूर पोषक तत्व का भंडार

नारियल मांगलिक फल है। इसके पेड़ को तरुवृक्ष कहते हैं। इसका फल औषधीय गुणों से भरपूर और पोषक तत्वों का भंडार है। नारियल से बने तेल का उपयोग लोग बालों की सेहत के लिए करते हैं। रसोई में इसके तेल का उपयोग करने से ब्लड शुगर नियंत्रित होता है। हृदय रोग का निवारण होता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। इसमें फाइबर, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन सी और भरपूर मात्रा में मिनरल्स पाए जाते हैं।

कोट

किसानों की आय 2022 तक दोगुनी हो, इस दिशा में विश्वविद्यालय प्रशासन प्रतिबद्ध है। इसके सफलतम प्रयास में वैज्ञानिक भी बाजार मांग के अनुरूप खेती के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं।

डॉ अरुण कुमार, कुलपति, बीएयू