समाजवादी पार्टी में बाप-बेटे का झगड़ा खत्म होता नहीं दिख रहा. यह झगड़ा अब मुसलिम वोट को लेकर भी शुरू हो गया है. आज मुलायम सिंह ने अखिलेश पर मुसलमानों की उपेक्षा का सीधा-सीधा आरोप लगा दिया. इससे झगड़े के और गहराने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता. यह झगड़ा नहीं सुलझा तो दोनों को नुकसान होना तय है. यह झगड़ा अगर बाप-बेटों के अलग-अलग राह पकड़ने से सुलझता है, तो वह भी उतना ही नुकसानदेह होगा, जितना साथ-साथ रह कर उनके लड़ने से. सपा किसकी है, सपा के केंद्रीय अध्यक्ष कौन है और साइकिल किसके खाते में जाती है, इसमें से एक भी सवाल का ठोस जवाब किसी के पास नहीं है, चुनाव आयोग में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव दोनों की बराबर की दावेदारी है.

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इनमें से किसके दावे में कितना दम है, यह बताने में चुनाव आयोग इत्मीनान से फैसला करना चाहता है. लिहाजा अब तक तारीखें ही पड़ रही हैं. उससे आगे कोई बात बनती दिख नहीं रही है.

इस बीच मुसलिम वोट बैंक किसका है, इस पर बहस छिड़ी हुई है. आज, सोमवार को मुलायम सिंह यादव ने यह कह कर इस बहस को हवा दे दी कि उनके बेटे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुसलमानों की उपेक्षा की है. यह मुसलमानों की सहानुभूति और विश्वास को कायम रखने की उनकी कोशिश हो या अखिलेश के हिस्से से मुसलिम विश्वास की ईंट को खिसकाने की रणनीति, नुकसान अंतत: समाजवादी और मुसलमान, दोनों का है.

चुनाव की तारीख के एलान के साथ ही राजनीतिक दलों के बीच चुनावी बेचैनी और वोटरों के राय-मशविरे का सिलसिला ठोस शक्ल अख्तियार लेना चाहता है. कांग्रेस अब भी अधर में है. उसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ना नहीं और सपा में लड़ाई थम नहीं रही कि उससे कांग्रेस के गंठबंधन की संभावनाओं को कोई रूप दिया जा सके.

बसपा अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है और 403 में से 401 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुकी है. लिहाजा उससे कांग्रेस का चुनावी गंठबंधन नहीं हो सकता. दूसरी समाजवादी पार्टिंयां बहुत मजबूत हाल में हैं नहीं. लिहाजा उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे ज्यादा अनिश्चितता अगर किसी दल में है, तो वह कांग्रेस है. समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ कर इस गंठबंधन को 300 सीटें दिलाने का विश्वास तो कांग्रेस को है, लेकिन अकेले बूते वह पिछली बार के 29 के आंकड़े को वह छू सकेगी, इसमें भी संदेह है.

बसपा ने सभी वर्गों पर मुसलमानों को ऊपर रखा है. ओबीसी, दलितों और अगड़ों की 12 सीटें काट कर इस बार मुसलमान उम्मीदवारों को दे दी हैं. इसका भी असर होगा. 2012 के चुनाव में अपनी 80 सीटें और 4.52 फीसदी वोट शेयर गंवाने वाली यह पार्टी इस चुनावी समीकरण में जो भी नफा कमायेगी, उसमें मुसलिम वोट बैंक में सेंधमारी की भी हिस्सेदारी होगी.

वहीं, सपा में अब तक कुछ भी साफ नहीं है. पिछली बार 29.13 फीसदी जो वोट शेयर था और जो 206 सीटें थीं, उससे नीचे उतरने का खतरा उस पर मंडरा रहा है. चुनाव घोषणा के बाद आये पहले ओपिनियन पोल (एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीसी) में भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 32 प्रतिशत के मुकाबले 34 प्रतिशत वोट से जनता की संतुष्टि के मुद्दे पर आगे हों, सीटों के मुकाबले में 141 से 151 के अंक ही जुटा पाये हैं. वह भी अविभाजित सपा में. सपा के विभाजन के बाद यह आंकड़ा और भी अलग होगा.

ऐसे में राज्य के 18 फीसदी मुसलमान वोटरों में यह डर है कि कहीं सपा में झगड़े से पैदा हुए राजनीतिक कीचड़ में कमल न खिल जाये. मुलायम सिंह यादव के आज के बयान इस डर या चिंता को और भी गाढ़ा करेगा.