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मानव श्रृखला : एक शिक्षक की जुबानी

Satyam Sandliya 20170122_180408

सत्यम शांडिल्य, खरीक : सुबह सुबह फोन बजी मै उठा फोन पर कोइ कह रही थी उठिये आज मानव श्रृंखला के लिए तैयार होकर जल्दी जाना है मै तैयार हो गयी आप सोए हुए हैं। तब अचानक से ध्यान गया ओह ये तो मेरी धर्मपत्नी जी का फोन है। मैने भी आँख मलते हुए गुड माँर्निग बोला घडी की तरफ देखा तो साढे सात फोन काटते हुए बाथरुम की तरफ भागा थोडी देर मे तैयार होकर बाइक निकाली पहुँच गया स्कूल बच्चे खाना खा रहे थे विधालय प्रधान उसे दम भर खाने कि बोल रहे थे क्योकि बहुत दूर पैदल चलना है और बहुत देर खडा रहना है । खाना खाकर निकल पडे सेक्टर 175की ओर। हर तरफ सन्नाटा कही कोई नही मन बोल उठा सत्यम् तू हरबडी कर बैठा। इतना सोच ही रहा था कि बच्चो के आने का सिलसिला शुरू हो गया सब अपने अपने निर्धारित सेक्टर पर खडे होने लगे इसी बीच एक बडे साहब आए बिहपुर खरीक सीमा को उलझा गये। हर व्यक्ति अपने निर्धारित सेक्टर से पन्द्रह पीछे होने लगे तब उनसे छोटे साहब आए बोले ये क्या कर रहे है एसे मे हाँच पाँच हो जायेगा जो जहाँ है वही रहिये खाली जगह को भरिये अब ये सोचना थोडा मुश्किल था कि बडे साहब का बात माने कि छोटे साहब का सभी उदेरबुंद मे फँसे रहे। मैने सोचा क्यों न आगे बढ कर इस उत्सव का मजा लिया जाय , आगे बढा तो देखा एक बड़े साहब बच्चे को आगे बढने को बोल रहे थे बच्चे का साफ जबाव आ रहा था कि नही जब तक सर जी नही कहेन्गे मै यहाँ से नही हटुँगा। यह छण मुझे बहुत सुखद लगा आज के ईस युग मे शिक्षक के प्रति छात्रों कि आस्था देखकर । साहब थक हार कर बाहर निकले बोले बच्चे को डीएम साहब भी हटने कहेन्गे तो नही हटेन्गे जबतक मास्टर साहब नही कहेन्गे उस जगह उपस्थित सभी मास्टर साहब हँस पडे साहब तो बात समझ गये फिर साहब सभी शिक्षक को निर्देशित करने लगे तब जाकर श्रृंखला ने अपना रूप लेना शुरू किया। वहाँ से आगे बढे एक महिला मुखिया अपने देवर के साथ शिक्षक को निर्देशित कर हे थे कि एक शिक्षिका से देवर जी कि हो गयी तकरार देवर जी बच्चे को यहाँ से दुसरे जगह ले जाने कि बात कर रहे थे कि मैडम जी ने साफ और करे शब्दों मे कह डाला आप अपना जगह देखिये ये बच्चा यहाँ से कहीं नही जायेगा। देवर जी मुखिया भाभी के साथ वहाँ से खिसकने मे ही भलाई समझ गये । अब पता नही शिक्षिका यह रौब सातवे वेतन आयोग का लाभ पाकर जाग उठा था या देवर साहब जीतने के बाद आजतक पंचायत को एक रुपया का फंड न मिलने के दर्द से सहम गये । यह सीन भी अजीबोगरीब था पर अच्छा लगा। फिर आगे बढा बच्चे प्यास लगने कि शिकायत कर रहे थे पानी कि व्यवस्था ऊट के मुँह मे जीरा जैसा था मेरे स्कूल प्रधान का फोन आया बच्चा को प्यास लग गया है मै साहब से मिला उनसे एक जार पानी मिला रास्ते मे वो जाड चपरासी जी से छीन कर कथित बुद्धिजीवी लोगों ने पी लिया अपसोस रहा कि अपने स्कूल के बच्चे को पानी कि व्यवस्था नही कर सका। वापस बच्चो के तरफ लौट रहा था कि महिला धराम क्या हुआ मैने पुछा जबाब अजाया बेहोश हो गयी मैने कहा छिट्टा मारिये फिर क्या छिट्टे का बाढ सा आ गया महिला दो मिनट बाद होश मे आयी डाक्टर साहब को बुलाने गये कुछ लोग डाक्टर साहब के साथ आ ही रहे मै फिर आगे बढता गया हर जगह रास्ते मे पानी कि मांग थी अब साहब एक बजने के इन्तजार मे थे जैसे एक बजा बोले जाइये आप लोग घर। श्रृखला मे खडी एक महिला बोली मिललै कि यहाँ आबी कै फोटोयौ खीचै रहे तै मुँह देखी कै। साहब बोले रुकिये आपका फोटो हम खीच लेता हुँ महिला मुँह फेर जाती रही। स्कूली बच्चो ने श्रृखला तो बना दी मै आशा करता हुँ सामाज जिस उदेश्य के लिए यह बनाया गया वह उदेश्य सफल हो। इन्ही आशाओं के साथ
नोट : लेखक शिक्षक व युवा समाजसेवी हैं।

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