नवगछिया: मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा रूप माता ब्रह्मचारिणी हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रम्ह्चारणी की पूजा होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति के रूप प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थीमाता ब्रह्मचारिणी ने करीब एक हजार साल तक केवल फल-फूल ही खाये. माता में बहुत दिनों तक उपवास रखा और भगवान शंकर की आराधना की तथा तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए. इसके बाद माता ब्रह्मचारिणी ने सूखे बेल पत्र खाना भी छोड़ दिया.

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माता कई वर्षो तक निर्जला व्रत करती रही. जब माता ने पत्तो का भजन करना भी त्याग दिया तो इन्हें अपर्णा के नाम से जाना जाने लगा. कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर बहुत ही क्षीण हो गया. इसके बाद देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि आदि ने इनसे कहा की हे देवी आज तक इतना घोर तप किसी ने नहीं किया है. जल्द ही तुहारी मनोकामना पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति के रूप में प्राप्त होंगे. इसलिए अब तपस्या छोड़ कर घर लौट जाओ. इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया
किस रूप में होती है माँ ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली. माता ब्रह्मचारिणी का रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है. माता ब्रह्मचारिणी अपने दाये हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं.
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि
माँ दुर्गा का दूसरा रूप माँ ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों को अनन्तफल देने वाली हैं. इनकी उपासना तथा पूजन से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है.
माता की पूजा करने के लिए सबसे पहले पूजाघर के आस-पास गंगाजल या गोमूत्र छिड़ कर पूजाघर को सुद्ध कर लें
माँ ब्रह्मचारिणी के पूजन का महत्व और फायदे
नवरात्रि में दुर्गा पूजा की जाती है. नवरात्री के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-उपासना की जाती है. इस दिन माता को शक्कर का भोग लगाया जाता है. देवी ब्रह्मचारिणी का रूप तपस्विनी जैसा है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है. देवी दुर्गा का यह रूप भक्तों को अमोघ फल देने वाला है. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है.














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