
नवगछिया: ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने वाली माताओं के पुत्र दीर्घजीवी होते हैं और उनके जीवन में आने वाली सारी विपतिया खुद व खुद टल जाता है नवगछिया डॉट कॉम की टीम सइ बातचीत में पंडित अजीत बाबा ने बताया कि गुरूवार को नहाय रवाय शुक्रवार को उपवास एव शनिवार को 7 बजे सुबह के बाद पारण जीवित पुत्रिका व्रत भविष्य पुराण से लिया गया है अपने पुत्र के दीर्घायु होने की कामना के साथ माताओं द्वारा कई तरह के व्रत उपवास किये जाते हैं, लेकिन इनमें जीवित पुत्रिका व्रत का अलग महत्व है। पुत्रवती माताएं इस व्रत को पूरे मनोयोग से करती हैं। ऐसी मान्यता है कि जीवितिया व्रत रखने वाली माताओं के पुत्र न केवल दीर्घायु होते हैं बल्कि उन्हें हर तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इस त्योहार को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार, सतयुग में जीयूतवाहन नाम का सत्य आचरण करने वाला अति दयालु राजा था। एक दिन उसके पास विलाप करती हुई एक स्त्री पहुंची। राजा द्वारा पूछने पर उस उसने बताया कि गुरुड़ प्रतिदिन आकर गांव के लड़कों को खा जा रहा है। उसके एकलौते पुत्र को भी गरुड़ खा गया। जिसके वियोग में वह विलाप कर रही है। इस बात को सुनकर राजा उस स्थान पर गया जहां गुरुड़ प्रतिदिन बच्चों का मांस खाया करता था। राजा को वहां देख गरुड़ उस पर टूट पड़ा और उसका मांस खाने लगा। जब गुरुड़ राजा का बायां अंग खा लिया तो राजा ने अपना दाहिना अंग उसकी ओर कर दिया। इस पर आश्चर्यचकित गुरुड़ ने राजा का परिचय पूछा। राजा ने कहा- हे पक्षीराज, आपको इस तरह परिचय पूछने की बजाय मांस खाने से मतलब रखना चाहिए। यह सुनकर गुरुड़ रूक गया और आदर पूर्वक राजा से अपना नाम बताने का आग्रह किया। इस पर राजा ने बताया कि सूर्यवंश में मेरा जन्म हुआ है। मेरी माता का नाम शैव्या एवं पिता का नाम शालिवाहन है। राजा का परिचय एवं उसकी दयालुता से प्रभावित गुरुड़ ने कहा- हे महाभाग! तुम्हारे मन में जो अभिलाषा हो मुझसे मांगों। राजा ने गुरुड़ से प्रार्थना की कि वे बच्चों को न मारे और ऐसा कोई उपाय करें कि मरे हुए बच्चे पुन: जीवित हो जाएं। गुरुड़ ने राजा की बात मानकर ऐसा ही किया। उसने राजा से कहा आज आश्रि्वन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। इस दिन आपने यहां की प्रजा को जीवनदान दिया है। इस दिन जो स्त्रियां कुश की आकृति बनाकर तुम्हारी पूजा करेंगी उसके पुत्र चिरंजीवी होंगे एवं उसका सौभाग्य बढ़ेगा। पूर्व में द्रौपदी ने धौम्य से यह कथा सुनकर अपने पुत्रों के दीर्घायु होने के लिए यह व्रत किया और उन्हें जीयूतवाहन की कथा सुनाई। इस व्रत एवं इसके प्रभाव को देख एक चिल्ही ने अपनी सखी सियारिन को जीवित पुत्रिका व्रत करने को कहा। आश्रि्वन कृष्णपक्ष अष्टमी को चिल्ही और सियारिन ने नियमानुसार व्रत रखा, लेकिन कथा सुनने के दौरान सियारिन को भूख लग गयी और वह शमशान में जाकर इच्छा भर मांस खा लिया, जबकि चिल्ही ने पूरे दिन व्रत रखकर नवमी तिथि को गोरस से पारण किया। अगले जन्म में चिल्ही और सियारिन काशी के एक व्यवसायी के यहां सगी बहन के रूप में पैदा हुई। बड़ी होने पर सियारिन की शादी काशी नरेश एवं चिल्ही का विवाह राजा के एक मंत्री से हुई। सियारिन के पुण्य प्रताप से उसे आठ तेजस्वी पुत्र हुए, जबकि रानी (सियारिन) के पुत्र पैदा होते ही मर जाते थे। ईष्र्यावश रानी ने मंत्री के पुत्रों को मारने के लिए तरह-तरह के प्रयोजन किये लेकिन मंत्री की पत्नी ने जीवित पुत्रिका के पुण्य बल से अपने बच्चों को बचा लिया। अंत में रानी मंत्री के घर पहुंची और मंत्री की पत्नी से पूछा-बहन! तुमने ऐसा क्या पुण्य किया है जिससे तुम्हारे बच्चे नहीं मरते। इस पर चिल्ही (मंत्री की पत्नी) ने उसे सारा वृतांत सुनाकर जीवित पुत्रिका व्रत करने की सलाह दी। आगे चलकर रानी ने भी विधानपूर्वक जीवित पुत्रिका व्रत किया जिसके बाद उसे कई पुत्र हुए जो आगे चलकर प्रतापी राजा हुए। इस कथा के अनुरूप कलियुग में भी माताओं द्वारा पुत्रों के दीर्घायु होने के लिए जीवित पुत्रिका व्रत किया जाने लगा।