सरस्वती पूजा के अवसर पर आज हम आपको ऐसी जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां मां सरस्वती साल भर पूजी जाती हैं। जी हां, कटिहार जिले के बारसोई प्रखंड स्थित बेलवा गांव के प्राचीन सरस्वती स्थान मंदिर में पूरे साल मां सरस्वती की आराधना की जाती है। मान्यता है कि यहां कालीदास ने भी आराधना की थी।

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इस प्राचीन मंदिर से लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है। लोग यहां नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। ग्रामीणों की आराध्य मां सरस्वती ही हैं। प्राचीन सरस्वती स्थान में स्थापित मूर्ति महाकाली, महागौरी और महासरस्वती का संयुक्त रुप है। यहां के लोग इसे नील सरस्वती कहते हैं। उनकी राय में ज्ञान ही समृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत है।

यहां कालीदास ने की थी उपासना

पुजारी राजीव कुमार चक्रवर्ती के अनुसार बेलवा से चार किमी दूर पर वाड़ी हुसैनपुर स्थित है, जहां अब भी राजघरानों के अवशेष हैं। मान्यता है कि महाकवि कालीदास की ससुराल यहीं थी।

कालीदास ने अपनी पत्नी से दुत्कार खाने के बाद इसी सरस्वती स्थान में आकर उपासना की थी। इसका इतिहास कहीं नहीं है कि उन्हें कहां ज्ञान प्राप्त हुआ। ऐसे में बेलवा में उनकी सिद्धि की बात को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। कहा जाता है कि महाकवि कालीदास उज्जैन में जाकर प्रसिद्ध हुए थे।

कभी दी जाती थी बलि

पुजारी राजीव चक्रवर्ती का कहना है कि तीनों देवियों के संयुक्त रूप के कारण यहां पूर्व में बलि देने की प्रथा भी थी। लेकिन, सात्विक प्रवृत्ति की देवी मानी जाने के कारण मां सरस्वती स्थान में सन 1995 से बलि पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।

दिखता हिंदु-मुस्लिम सद्भाव

गांव के लोग मंदिर को अनुपम उपहार मानते हैं। उनकी माने तो बेशक यहां हिन्दू समुदाय के लोग ही पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस तोहफे को नायाब मानते हैं।