पटना [जेएनएन]। हिंदी फ़िल्म मेकरों के लिए बिहार और यहां की राजनीति हमेशा से एक पसंदीदा विषय रहा है। बिहार पर यूं तो कई फ़िल्में बनी हैं, मगर चंद फ़िल्में सच्चाई और हालातों के इतने करीब लगती हैं कि आपके दिल को छू जाती हैं। बिहार पर बनी सात एेसी फ़िल्में जिन्होंने नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड में भी अपना झंडा गाड़ा है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बिहार की राजनीति के अपराधीकरण को दर्शाती है शूल
1999 में आयी फ़िल्म को राम गोपाल वर्मा ने लिखा और प्रॉड्यूस किया था और फ़िल्म का निर्देशन किया था ई. निवास ने। इस फ़िल्म में बिहार की राजनीति के अपराधीकरण को शानदार तरीके से दिखाया गया।
मनोज बाजपेयी ने एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर के गज़ब का काम किया।
इस फ़िल्म को हिंदी में बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिल चुका है।
राज कपूर की बेहतरीन फिल्म तीसरी कसम
बासु भट्टाचार्य की 1966 में आयी तीसरी कसम बिहार के ग्रामीण जीवन को बहुत साफ और सीधे तरीके से दिखाती है। फ़िल्म हिंदी के उपन्यासकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की शॉर्ट स्टोरी मारे गए गुलफाम पर आधारित है। फ़िल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान का शानदार अभिनय देखने को मिलता है।
फ़िल्म में बैल गाड़ी चलाने वाले राजकपूर को नौटंकी में नाचने वाली वहीदा रहमान से प्यार हो जाता है। इस फ़िल्म को बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म के नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया।
प्रकाश झा की गंगाजल ने भी कायम किया कीर्तिमान
2003 में आयी निर्देशक प्रकाश झा की गंगाजल बिहार में पुलिस और अपराध की मिलीभगत और गंदी राजनीति को बेहतरीन तरीके से दिखाती है। फ़िल्म में अजय देवगन ने एक ईमानदार और गंभीर एसपी का किरदार शानदार तरीके से निभाया है।
भागलपुर में कैदियों की आंख फोड़ने की सच्ची घटना से प्रेरित इस फ़िल्म में अजय के अलावा मुकेश तिवारी, मोहन जोशी, यशपाल शर्मा और अखिलेंद्र मिश्रा जैसे कई अभिनेताओं का शानदार अभिनय देखने को मिलता है। गंगाजल को सामाजिक मुद्दे पर बनी बेस्ट फ़िल्म के नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया।
बाहुबली विधायक की कहानी थी अपहरण
2005 में आयी प्रकाश की अपहरण में अजय देवगन और नाना पाटेकर की शानदार कैमिस्ट्री देखने को मिलती है। नाना पाटेकर जहां एक बाहुबली विधायक के किरदार में हैं तो वहीं अजय देवगन एक बेरोज़गार युवक का किरदार निभाया जो देखते ही देखते अपहरण की दुनिया का सरताज बन जाता है।
फ़िल्म में बिहार में बड़े पैमाने पर होने वाली अपहरण की घटनाओं और राजनेताओं से उनके संबंध को ज़ोरदार तरीके से दिखाया गया है। फ़िल्म को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला।
फेमस रही है फिल्म – गैंग्स ऑफ वासेपुर – 1 और 2
गैग्स ऑफ वासेपुर शायद बिहार पर बनी सबसे चर्चित फ़िल्म है। अनुराग कश्यप का शानदार निर्देशन और मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दकी के बेमिसाल अभिनय वाली इस फ़िल्म को उसके डायलॉग के लिए लोग खूब याद करते हैं।
झारखंड (तत्कालीन बिहार) के धनबाद में फैले कोल माफिया के इर्द-गिर्द घूमती ये फ़िल्म दो परिवारों की खानदानी दुश्मनी को शानदार तरीके से दिखाती है। फ़िल्म के पहले भाग में जहां मनोज बाजपेयी और तिग्मांशु धूलिया छाए हुए हैं तो वहीं दूसरा पार्ट नवाजुद्दीन सिद्दीकी के नाम है।
फ़िल्म की जान हैं इस फ़िल्म के सपोर्टिंग कलाकार जो आपको ऐसा सिनेमा दिखाते हैं जिसे भारत में इससे पहले नहीं देखा गया था। इस फ़िल्म को बेस्ट ऑडियो ग्राफी (पहले पार्ट के लिए) का नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड से नवाज़ा गया।
कलात्मक फिल्मों में याद की जाती है दामूल
प्रकाश झा की 1985 में आयी दामूल गया के रहने वाले शैवाल की कालसूत्र कहानी पर आधारित है। फ़िल्म में अनु कूपर, दीप्ति नवल और श्रीला मजूमदार का शानदार अभिनय देखने को मिलता है। फ़िल्म बंधुआ मज़दूर की कहानी कहती है जो अपनी मौत तक अपने मालिक का काम करने के लिए मज़बूर है।
1984 के बिहार को दिखाती इस फ़िल्म में जाती की राजनीति और निचली जाती के उत्पीड़न को मार्किक तरीके से दिखाया गया है। इस फ़िल्म में बिहार से बड़ी मात्रा में होने वाले माइग्रेशन के मुद्दे को भी ज़ोरदार ढंग से दिखाया गया है। प्रकाश झा की इस फ़िल्म को बेस्ट फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला।
बिहार में होने वाली दूल्हों की किडनैपिंग पर बनी थी फिल्म अंतर्द्वंद
2010 में आयी अंतरद्वंद, बिहार में होने वाली दूल्हों की किडनैपिंग पर बनी एक शानदार फ़िल्म है। हालांकि फ़िल्म को कमर्शियल सक्सेस बहुत ज़्यादा नहीं मिली लेकिन एक खास दर्शक वर्ग ने इस फ़िल्म को जमकर सराहा।
इस फ़िल्म का निर्देशन सुशील राजपाल ने किया और राज सिंह चौधरी व स्वाति सेन ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। इसके अलावा फ़िल्म में विनय पाठक और अखिलेंद्र मिश्रा की दमदार एक्टिंग देखने को मिलती है। इस फ़िल्म को सामाजिक मुद्दे पर बनी फ़िल्म का नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड मिला।