भागलपुर के निजी स्कूलों के लिए बच्चों के बैग, यूनिफॉर्म तथा जूते-मोजे भी आय के प्रमुख स्रोत बन गए हैं। देश के नौनिहालों को जीवन में हर दिन आदर्श का पाठ पढ़ाने वाले स्कूल कमीशन के चक्कर में स्कूल में जूते-मोजे भी बेचने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।

जिन स्कूलों में दुकान नहीं सजी है वह सीधे कंपनी, मॉडल और चिह्नित दुकान की पर्ची अभिभावकों को थमा दे रहे हैं। इसमें सामाजिक स्कूल भी पीछे नहीं हैं। स्कूल के गेट पर पहुंचते ही चपरासी एक सांस में सारे नियम-कायदे समझा देगा। काउंटर संचालक का मोबाइल नंबर भी जुबानी याद है। यहां जब चाहें ड्रेस, जूते आदि का ऑर्डर दे सकते हैं।

स्कूल प्रबंधन का कहना है कि एक जैसी यूनिफॉर्म के लिए बच्चों को यह सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। जबकि अभिभावकों का कहना है कि बाजार से अधिक कीमत पर सामान उपलब्ध कराया जाता है। दीघा की आरती कुमारी ने बताया कि मार्च में कॉन्वेंट और निजी स्कूलों का मिशन कुछ और हो जाता है।

1700 से 8000 रुपये तक के सेट

भागलपुर के निजी स्कूलों में यूनिफॉर्म का सेट 1700 से 8000 रुपये पर स्कूल प्रबंधन उपलब्ध करा रहा है। पीटी ड्रेसस के लिए अलग से राशि ली जाती है। सरोजनी नगर, दिल्ली के कारोबारी सत्यपाल सिंह ने बताया कि ज्यादातर यूनिफॉर्म दिल्ली से ही मंगाई जाती है। थोक और खुदरा मूल्य में लगभग 50 से 60 फीसद का अंतर होता है। ड्रेस का ऑर्डर नवंबर-दिसंबर में लिया जाता है। बड़े स्कूलों में लगभग तीन से चार हजार सेट मंगाए जाते हैं।

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15 दिनों में होता है 100 करोड़ का कारोबार

विभिन्न स्कूलों में बैग, यूनिफॉर्म, जूते-मोजे आदि सप्लाई करने वाले राजधानी के थोक कारोबारियों का कहना है कि निजी स्कूल अधिसंख्य सामाग्री दिल्ली और कोलकाता से मंगाते हैं। जूते के लिए कंपनी से ही समझौता हो जाता है। पिछले कुछ वर्षों से कानपुर से पीटी ड्रेस और जूते की सप्लाई हो रही है।

हर साल बढ़ रही स्कूलों की फरमाइश

राजेंद्र कॉलोनी के विवेक का कहना है कि स्कूलों की फरमाइश हर साल बढ़ती जा रही है। पिछले सप्ताह दो तरह की ड्रेस खरीदने के लिए कहा गया था। इस बार सप्ताह में तीन तरह की डे्रस पहननी होगी। निजी स्कूल प्रबंधकों का कहना है कि अब पढ़ाई के साथ-साथ लुक पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है। अभिभावक अब कोर्स के साथ-साथ बच्चों को विविध क्षेत्र में बेहतर देखना चाहते हैं।

नियमावली नहीं होने का लाभ उठा रहे संचालक

स्कूली शिक्षा पर कार्य करने वाले नेशनल यूथ अवार्डी बीरेंद्र शर्मा का कहना है कि निजी स्कूलों की मनमानी का प्रमुख कारण है ‘निजी स्कूल संचालन अधिनियम’ का नहीं होना। देश के अन्य राज्यों में नियमावली कई दशकों से कार्यरत है। पिछले साल अभिभावकों के हंगामा करने पर इसके निर्माण को लेकर सुगबुगाहट थी। इस साल तो कुछ भी नहीं दिख रहा है। अभिभावक स्कूल प्रबंधक के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो बच्चों को लक्षित कर कार्रवाई की जाती है। कार्रवाई नहीं होने के कारण मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है।