हैरानी होगी आपको यह जानकर कि एंटीबायोटिक्स का अंधाधुंध इस्तेमाल एड्स से भी ज्यादा घातक हो सकता है। डब्लूएचओ ने चेतावनी जारी की है कि अगर इसी तरह एंटीबॉयोटिक्स का उपयोग किया जाता रहा तो भारत समेत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में वर्ष 2050 तक एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत इसके दुष्प्रभाव से हो सकती है।

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दवाओं का असर हो रहा है खत्म

एचआईवी संक्रमण होने पर शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है, जबकि एंटीबॉयोटिक के हद से ज्यादा इस्तेमाल से उनके खिलाफ माइक्रोबियल पैदा हो रहा है जो कि दवाओं के असर को खत्म कर रहा है। एंटीबायोटिक्स के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से भारत में लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता पर भी बुरा असर पड़ा है।

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देश के लोगों ने इतनी एंटीबायोटिक ले ली हैं कि उनके शरीर में रेजिस्टेंट पैदा होने से अब एंटीबायोटिक्स ने काम करना बंद कर दिया है। ऐसे में छोटी-छोटी परेशानियां बड़ी समस्याओं का रूप ले रही हैं। देश में 80 फीसदी संक्रामक रोग वायरस से होते हैं, ऐसे में एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती। वर्ष 2000 से 2010 के बीच दुनियाभर में एंटीबायोटिक्स की खपत में लगभग 30 फीसदी का इजाफा हुआ।

बढ़ता डायबिटीज का खतरा

बुखार, खांसी या जुकाम होने पर एंटीबायोटिक्स से परहेज करना चाहिए। इनका बार-बार इस्तेमाल करने से डायबिटीज का खतरा 53 फीसदी तक बढ़ जाता है। अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के सेंटर फॉर डायबिटीज रिसर्च में यह स्टडी की गई है।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक एंटीबायोटिक्स से पेट में बैक्टीरिया की संख्या व उसका स्वरूप बदल जाता है। इसका लगातार प्रयोग करने से मेटाबॉलिज्म असंतुलित हो जाता है। एंटीबायोटिक्स की वजह से अच्छे बैक्टीरिया की संख्या कम हो जाती है व खराब बैक्टीरिया की संख्या बढऩे से पेनक्रियाज का संतुलन बिगड़ जाता है।

हो सकता है जानलेवा

सही तरीके से एंटीबायोटिक्स न लेने पर साइड इफेक्ट हो सकता है। इसमें स्टेफन जॉनसन सिंड्रोम बेहद आम है।

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इस सिंड्रोम में मुंह में छाले और चेहरे व छाती पर दाने निकल आते हैं। यह जानलेवा भी हो सकता है।