देवगुरु बृहस्पति मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश कर चुके हैं। इस साल में गुरु (बृहस्पति) का यह पहला राशि परिवर्तन है। उनका कुंभ राशि में यह प्रवेश करीब 12 साल बाद हो रहा है। इसके बाद वर्ष 2033 में बृहस्पति कुंभ राशि में आएंगे। अभी तक देवगुरु अपनी नीच राशि में शनि के साथ गोचर कर रहे थे। अब शनि की ही राशि कुंभ में गोचर करेंगे। इस राशि में यह 13 सितंबर तक रहेंगे। इसी बीच 20 जून को रात 8.34 बजे वे वक्री (उलटी चाल) होंगे और उसी अवस्था में चलते हुए पुनः 14 सितंबर की दोपहर 2.27 बजे पुनः मकर राशि में प्रवेश करेंेगे। लेकिन 20 नवंबर को देर रात 11.24 बजे पुनः कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे।

रुके हुए अनुसंधान कार्यों को मिलेंगे सकारात्मक परिणाम

खास बात यह रहेगी कि शनि के साथ युति रहने से इनके प्रभाव में कमी आ गई थी, लेकिन अब यह प्रभावशील होकर शिक्षा, रोजगार कला व संस्कृति और अध्यात्म की ओर जाएंगे। इसके बाद 18 अक्टूबर को मार्गी क्षेत्र में उन्नतिकारक साबित होंगे। इन क्षेत्रों में जो अनुसंधान रुके हुए थे, वे पूरे होकर सकारात्मक परिणाम दिला सकेंगे। कुल मिलाकर भगवान विष्णु के प्रभाव में वृद्धि होने से रोगों में कमी आनी शुरू हो जाएगी। राशि परिवर्तन से वृषभ, मेष और मिथुन राशि के लिए एक वर्ष लाभकारी रहेगा।

गुरु ग्रह धर्म, अध्यात्म, धन, ज्ञान व मंगलकारी दाम्पत्य जीवन का भी कारक

ज्योतिषाचार्यों ने बताया- देव गुरु को सर्वाधिक शुभ एवं शीत्र फलदायी माना गया है। गुरु को धर्म-अाध्यात्म, धन, ज्ञान और सत्कर्म का कारक माना जाता है। ये वृषभ, मेष और मिथुन राशि के लिए मंगलकारी दाम्पत्य जीवन का भी कारक ग्रह है। शनि के साथ इसकी युति समाप्त होने से जिन जातकों के विवाह रुके थे, उनके विवाह में आ रही बाधाएं दूर होंगी। गुरु पंचम दृष्टि से मिथुन, सप्तम से सिंह व नवम से तुला को देखेंगे। लोगों का रुझान संगीत, कला आदि की तरफ बढ़ेगा।

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