जमुई। एक ऐसा भी गांव है, जहां युवतियों को शादी के लिए बीड़ी बनाने में दक्ष होना आवश्यक है। लड़का पक्ष लड़कियों से बीड़ी बनवा कर उनकी परीक्षा लेते हैं। परीक्षा में फेल होने पर रिश्ता टूट जाता है। लिहाजा, बचपन से ही लड़कियों को बीड़ी बनाने की सीख मिलती है। यह गांव जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड का धनियाठीका है। यहां ना चाहते हुए भी युवतियों को बीड़ी बनाना सीखना पड़ता। नतीजतन इस गांव के कई बच्चे कई बीमारियों से भी ग्रस्त होते रहे हैं। बीड़ी में हर कश में बच्चों की मासूमियत सुलगती रही है।

गांव की 45 हजार आबादी बीड़ी मजदूरी पर निर्भर है। बीड़ी बनती है तो घर का चूल्हा जलता है। प्रखंड में एक स्वयंसेवी संस्था के सर्वेक्षण के अनुसार 45 हजार महिला एवं पुरुष बीड़ी बनाने के धंधे में जुड़े हुए है। जिसमें लगभग 20 हजार महिलाएं एवं युवतियां बीड़ी बनाती है। तीन हजार बीड़ी मजदूर यक्ष्मा, गठिया एवं असाध्य रोगों से ग्रसित है। बताया कि 85 रुपये से 95 रुपये प्रति हजार बीड़ी मजदूरी मिलती है।

-लड़का पक्ष बीड़ी बनवा कर लेता है परीक्षा
– बचपन से लड़कियों को सिखाई जाती है बीड़ी बनाना
-कई महिलाएं व पुरुष हो जाते हैं बीमार

मामला-01

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धनियाठिका निवासी आफताब आलम ने बताया कि पुत्री की निकाह तय की गई। लड़के वालों ने कहा कि निकाह के बाद मेरा बेटा प्रदेश कमाने चला जाएगा। लड़की बीड़ी बनाने में दक्ष होगी तभी रिश्ता पक्का समझा जाएगा। शादी के लिए बेटी को बीड़ी निर्माण में कुशल बनाया गया।

मामला-02

चांदनी खातून कहती है कि लड़के वालों ने निकाह से पहले मेरी पुत्री से बीड़ी बनवाकर देखा तब जाकर रिश्ता तय किया। शिक्षा, दीक्षा, रुप रंग की जगह बीड़ी बनाने की कला ज्यादा जरूरी है।

मामला-03

राशिद अंसारी ने बताया कि लड़के वाले जब हमारी बेटियों को बीड़ी बनाते देख लेते हैं तो अन्य किसी चीज की डिमांड नहीं करते। निकाह से उन्हें एक दक्ष व कुशल बीड़ी बांधने वाली कारीगर मिल जाती है जो रोजी रोटी में सहायक होती है।

‘शादी टूटने से युवतियों को तनाव होगा। तनाव अवसाद को रुप ना ले इसका घरवालों को ध्यान रखना चाहिए। बीड़ी बनाने से कई प्रकार की बीमारियां भी होती है।’- उदय कुमार, मनोविज्ञानी, जमुई।