अक्षय तृतीया या आखा तीज बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस बार यह 14 मई को है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। यही कारण है कि इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि यूं तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्ष की तृतीया शुभ होती है। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।

भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करना चाहिए

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहू का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। फल, फूल, बर्तन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है।

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सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी इसका विशेष महत्व

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र आभूषणों की खरीदारी या घर भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में वर्णित है कि इस दिन पितरों को पिंडदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने तथा पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते

गर्मी में लाभकारी वस्तु के दान का है महत्व

वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े कुल्हड, पंखे, खड़ाऊ छाता चावल, नमक, घी, खरबूजा ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होंगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिए।