कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन देवता अपनी दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं. इसलिए, यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान और दान को अधिक महत्व दिया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा पर दीप दान का भी विशेष महत्व दिया जाता है. माना जाता है कि इस दिन दीप दान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं. वहीं, इस बार इसी दिन इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लग रहा है. आइए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त, कथा और इसका क्या है महत्व…

इस दिन भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार

पुराणों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर ही भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था.

यहां जानें व्रत विधि

Whatsapp group Join

कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने से एक दिन पहले प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत फल, दूध और हल्के सात्विक भोजन के साथ किया जाता है. यदि आप बूढ़े, बीमार या गर्भवती हैं, तो आपको यह ‘निर्जला’ व्रत करने की सलाह नहीं दी जाती.

कार्तिक पूर्णिमा के दिन करें दीप दान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप दान का भी विशेष महत्व है. देवताओं की दिवाली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीप दान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दीप दान करने पर जीवन में आने वाले परेशानियां दूर होती है.

कार्तिक पूर्णिमा 2020 तिथि

इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को मनाई जाएगी. वहीं, इस दिन चद्र ग्रहण भी लग रहा है. पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 30 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम के एक असुर को मार दिया था. यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है. इस प्रकार भगवान शिव ने इस दिन अत्याचार को समाप्त किया था. इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में, काशी (वाराणसी) के पवित्र शहर में भक्त गंगा के घाटों पर तेल के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं.

देव दीपावली की पहली कथा

देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है. मान्यता है कि एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी. उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया. यह देखकर देवता अचंभित रह गए. विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी. इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा. उनको यह हार स्वीकार नहीं थी.

तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी. इससे देवता भयभीत हो गए. उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी. अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए. उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी. इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया