कार्तिक माह की एकादशी तिथि को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. कहते हैं कि कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं, इसीलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन से ही हिन्दू धर्म में शुभ कार्य जैसे विवाह और अन्य शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम का देवी तुलसी से विवाह होने की परंपरा भी है. माना जाता है कि जो भक्त देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है. वहीं एकादशी व्रत को लेकर मान्यता है कि साल के सभी 24 एकादशी व्रत करने पर लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

तुलसी विवाह के लिए तुलसी का पौधा एक चौकी पर आंगन के बीचो-बीच रखा जाता है. तुलसी जी के सामने मेहंदी, मौली धागा, फूल, चंदन, सिंदूर, सुहाग के सामान की चीजें, चावल और मिठाई, पूजन सामग्री के रूप में रखी जाती हैं. तुलसी विवाह करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है. आइए जानते हैं तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और पढ़ें ये कथा.


तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक माह में भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप और मां तुलसी के विवाह का विधान है. देवात्थान एकादशी के दिन चतुर्मास की समाप्ति होती इसके अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल देवोत्थान एकादशी 14 नवंबर को है और तुलसी विवाह का आयोजन 15 नवंबर (सोमवार) को किया जाएगा. एकादशी तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी और द्वादशी तिथि आरंभ होगी. द्वादशी तिथि 16 नवंबर (मंगलवार) को सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगी.

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तुलसी विवाह की पूजन विधि

कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. तुलसी विवाह के लिए एक चौकी पर आसन बिछा कर तुलसी जी को और शालीग्राम की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. चौकी के चारों और गन्ने का मंडप सजाएं और कलश की स्थापना करें. सबसे पहले कलश और गौरी गणेश का पूजन करना चाहिए. इसके बाद माता तुलसी और भगवान शालीग्राम को धूप, दीप, वस्त्र, माला, फूल अर्पित करें. तुलसी जी को श्रृगांर के समान और लाल चुनरी चढ़ाई जाती है. ऐसा करने से सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है. इसके बाद तुलसी मंगाष्टक का पाठ करें. हाथ में आसन सहित शालीग्राम जी को लेकर तुलसी जी के सात फेरे लेने चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु और तुलसी जी की आरती का पाठ करना चाहिए. पूजन के बाद प्रसाद का वितरण करें