नवगछिया : नवगछिया इलाके के रंगरा चौक प्रखंड का सहोड़ा गांव जो दूध उत्पादन के रूप में प्रसिद्ध था, लेकिन कोसी नदी के कटाव के कारण यहां के पशुपालक दाने-दाने को मोहताज हैं। ऐसे में वे पंजाब, असम, हरियाणा और दिल्ली में रिक्शा चलाने को विवश हैं। नदी के कटाव के कारण न उनके पास जमीन है और न ही पशु। गांव के लोगों का मुख्य पेशा खेती व पशुपालन था। प्रत्येक परिवार के पास अपनी जमीन और दूधारू पशु थे। यहां से कटिहार, नवगछिया, पुर्णिया, जोगबनी तक दूध भेजा जाता था, लेकिन कोसी ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया।

वृद्ध योगेद्र यादव बताते हैं कि गांव के लोग शादी विवाह में दूध नहीं खरीदते थे। गांव के लोग आपस में ही दूध इकट्ठा कर शादी वाले घर में दे आते थे, किंतु कोसी कटाव के चलते आज स्थिति काफी भयावह हो गई है। वहीं, गांव के अशोक यादव ने बताया कि 14 अगस्त 1987 को मात्र एक दिन में कोसी के कटाव से आठ सौ घर नदी में विलीन हो गया था। कटाव इतना भयावह था कि गांव के लोग घर का कोई भी सामान नहीं निकाल सके थे। खाली हाथ सभी परिवार मदरौनी के पास रेलवे बांध पर झोपड़ी बना कर रहने लगे।

खेती की जमीन भी नदी में समा गई

कोसी ने सहोड़ा गांव के लोगों का घर तो छीन ही लिया, धीरे-धीरे खेती योग्य जमीन भी नदी काटती गई। कोसी नदी कटने के बाद जब जमीन कुछ समय बाद निकली भी तो उसमें केवल ककड़ी, परवल, कद्दु ही उपजता था। खेत के छीनने से गांव के लोगों के हाथ पशुचारा भी समाप्त हो गया। पशुचारा समाप्त होने से पशु भी हाथ से निकल गए। ऐसे में गांव वालों के पास न तो जमीन बची और न नहीं दूध देने वाले पशु। गांव के लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए। उन्होंने जीवन यापन करने के लिए गांव से पलायन शुरू कर दिया।

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यही कारण है कि आज भी दिल्ली, हरियाणा, असम, पंजाब और अन्य प्रदेशों में रिक्शा चलाने वाले सहोड़ा गांव के लोग मिल जाएंगे। गांव के लोग बांध पर ही जीवन यापन कर रहे थे कि दूसरी बार भी प्रकृति की मार पड़ी। वर्ष 2017 में कोसी कटाव ने पुराने रेलवे बांध पर शरण लिए सहोड़ा के लोगों को फिर से वहां से हटने को विवश कर दिया। कोसी के कटाव से पुराना रेलवे बांध नदी में समा गया। इससे चार सौ परिवार पुन: बेघर हो गए।

विस्थापितों को पर्चा दिया पर जमीन नहीं मिल पाई

पूर्व मुखिया मुक्तिनाथ सिंह ने बताया कि विस्थापित परिवार रेलवे लाइन किनारे, सड़क किनारे, एनएच 31 किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। 35 वर्ष से ये परिवार विस्थापित हैं। सरकार द्वारा एक भी परिवार को पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई। मदरौनी के विद्युत फीडर के पास सरकार ने 125 विस्थापित परिवारों को जमीन का पर्चा दिया था, किंतु जमीन पर आज तक कब्जा नहीं हो पाया।