नवगछिया । कारगिल युद्ध में 2 जुलाई 1999 को तिरासी निवासी हवलदार रतन सिंह के शहीद होने के बाद इलाके के दर्जनों युवाओं ने देश सेवा की शपथ ली थी।  उनकी याद में गांव में बना शहीद स्मारक पर पुष्प चढ़कर आज भी युवा देश सेवा की कसमें खाते हैं। उनकी शहादत के बाद एक के बाद एक युवाओं ने सेना की वर्दी पहनी थी। ग्रामीण शहीद के कारनामों की चर्चा कर लोगों के हृदय में देश प्रेम की भावना जागते हैं।
रतन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1959 को हुआ था । 23 फरवरी 1979 को वे सेना  में भर्ती हुए थे।  सेवा काल के दौरान  वे मुख्यालय  42 पैदल ब्रिगेड  बंगाल बटालियन एनसीसी में पद स्थापित रहे थे।  शहीद के घर की  दीवार पर सेना की वर्दी में टंगी उनकी तस्वीर आज भी उनकी शहादत की याद को ताजा कर देती है।

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पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया

 कारगिल युद्ध में 29 जून 1999 को मध्य रात्रि में बिहार रेजीमेंट को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाने की कमान सौंपी गई। बटालिक क्षेत्र में 16,479 फीट ऊंचाई पर जुबेर टॉप चौकी की रक्षा के लिए हवलदार रतन सिंह  ने एड़ी चोटी लगा दी थी। 1 जुलाई को  जबरदस्त  गोली वाली के बीच जवानों ने  दो पाकिस्तानी कमांडो सहित अन्य सैनिकों को मार गिराया था, जिसमें बिहार रेजीमेंट के एक सैनिक घायल भी हुए थे, हवलदार रतन सिंह दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये थे। वे सोमालिया शांति सेना में भी शामिल रहे थे। उनकी याद में गांव में शहीद स्मारक बनाया गया है ।

शहीद रतन के बाद देश सेवा का कारवां बढ़ता गया : शहीद के पुत्र रूपेश बताते हैं पिता के शहीद होने के बाद गांव के युवाओं में देश प्रेम की भावना इतनी बड़ी  की आज गांव के दो दर्जन युवा सरहद पर दुश्मनों से लोहा ले रहे  हैं। रूपेश ने बताया की उनकी शहादत से प्रेरित होकर पांच भाई चचेरे भाइयों ने देश सेवा करने की जिद भरी और देश सेवा में एक-एक कर शामिल हुए। रूपेश बताते हैं कि पिताजी के गांव के युवाओं को फौज में जाने के लिए प्रेरित किया करते थे। जब भी वे गांव छुट्टी में आते थे तो सुबह 4:00 बजे ही सीटी बजा कर  युवाओं को जागते थे, उनके साथ खुद  मैदान में जाते थे और फौज में भर्ती होने के तौर तरीके  बताते थे।  घर में बड़ा होने के कारण सभी भाइयों और  छोटी बहनों की  देखरेख की कंधों पर जिम्मेवारी के कारण में फौज में भर्ती नहीं हो सके।