नवगछिया : स्नान , दान -पुण्य का महापर्व मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा। जिसकी तैयारी पुरी कर ली गई है। लोग एक सप्ताह पूर्व से ही दूध को जमाने लगते है। त्यौहार का गहरा महत्व सूर्य और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उनके समर्पण में है। मकर संक्रांति पर्व जो हमारे जीवन और कल्याण के लिए होता हैं।.मकर संक्रांति शुभ दिनों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है जो अगले छह महीनों तक जारी रहती है और इस दिन दिसंबर के मध्य से शुरू होने वाले अशुभ दिनों की समाप्ति होती है।

इस अवधि को उत्तरायण काल ​​भी कहा जाता है। पंडित आचार्य कौशल जी वैदिक एवं आचार्य पंडित राम जी मिश्रा ने बताया विश्व विद्यालय पंचांग के मुताबिक भगवान सूर्य देव 15 जनवरी सुबह 7.55 मिनट पर उत्तरायण होंगे यानि सूर्य चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। यही वजह है कि सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का पर्व संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को सर्वाथ सिद्धि योग का संयोग भी रहेगा। बताया कि इस बार संक्रांति का वाहन गर्दभ होगा। संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी बुधवार के दिन भर दान-पुण्य और स्नान किया जा सकेगा।

मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्यदेव उत्तरायण हो जाएंगे। दिन भी बड़े होने लगेंगे। इसके साथ ही धनु मलमास भी समाप्त हो जाएगा और मांगलिक कार्य शुरू होंगे।

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(मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त:)
पुण्यकाल सुबह 07:52से 2:16 बजे तक महापुण्य काल

मकर संक्रांति के साथ ही मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हो जाएगा। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही विवाह, नूतन गृह प्रवेश, नया वाहन, भवन क्रय-विक्रय, मुंडन जैसे शुभ कार्य शुरू हो होंगे। मकर संक्रांति के दिन दान-दक्षिणा का विशेष महत्व ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि इस दिन किया गया दान पुण्य और अनुष्ठान अभीष्ठ फल देने वाला होता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव जब मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। इस कारण मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है।
( मकर संक्रांति होने का कारण ) श्रीशिवशक्तियोगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कहा कि वर्ष में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं, जिनमें से सूर्य की मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति बेहद खास हैं | इन दोनों ही संक्रांति पर सूर्य की गति में बदलाव होता है।

जब सूर्य की कर्क संक्रांति होती है, तो सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन और जब सूर्य की मकर संक्रांति होती है, तो सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सीधे शब्दों में कहें तो सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही मकर संक्रांति कहलाता है। इसलिए कहीं- कहीं पर मकर संक्रान्ति को उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं, वहीं दक्षिणायन काल में ठीक इसके विपरीत- रातें बड़ी और दिन छोटा होने लगता है।