
खरीक :प्रखंड के रामगढ़ स्थित मां वामकाली का मंदिर का इतिहास प्राचीन है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं 500 वर्ष पहले मुनि बाबा ने पेड़ के नीचे पिंडी रखी थी। आज यहां भव्य मंदिर है। यह मंदिर इलाके में सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां मां के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से शीश झुकाते हैं, उनकी मुरादें पूरी होती हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!मन्नतें पूरी होने पर भक्त मैया को चढ़ावा के रूप में खप्पर चढ़ाते हैं। गांव के लोग मां काली को कुल देवी के रूप में पूजते हैं। शादी समेत कोई शुभ कार्य करने से पहले मैया के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। कहा जाता है मैया की कृपा से रामगढ़ समेत आसपास के कई गांवों में भी कभी किसी प्रकार की महामारी जैसी स्थिति नहीं होती है। इस मंदिर में हर वर्ष मां काली की प्रतिमा बिठाई जाती है। इस अवसर पर मंदिर परिसर में मेला भी लगता है। यहां बलि नहीं दी जाती है।
बुजुर्गों की मानें तो मुनि बाबू मिश्र को करीब पांच सौ वर्ष पहले मां ने स्वप्न दिया था कि मैं बहियार स्थित एक जंगल में रह रही हूं। मैं वामकाली हूं। मेरी स्थापना गांव में करो। नींद खुलते ही मुनि बाबू उस जगह पर पहुंचे और मैया की पिंडी को उठाकर गांव लाए। एक पेड़ के नीचे पिंडी स्थापित की। उनके निधन के बाद उनकी पुत्रवधू महारानी देवी मैया की सेवक बनीं। आज भी उनके वंशज द्वारा ही यहां पूजा कराई जाती है। इसमें इलाके के लोग भी सहयोग करते हैं।