खरीक पीएचसी में मरीजों के इलाज के लिए सुविधाओं का घोर अभाव है। डेढ़ लाख से अधिक की आबादी के इलाज के लिए इस पीएचसी में महज तीन डॉक्टर हैं। पुरुष मरीजों के इलाज के लिए वार्ड रूम की बात तो छोड़िए, बेड तक उपलब्ध नहीं है। पुरुषों का फर्श पर इलाज होता है। स्वास्थ्य सिस्टम की दर्दनाक दास्तान की हद तो तब और पार हो जाती है, जब एक साथ ही सड़क हादसे का शिकार कई घायलों को इलाज के लिए पुलिस या उनके परिजन लेकर पीएचसी आते हैं।

इतना ही नहीं, प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं के लिए भी मात्र 6 बेड हैं। जबकि, यहां रोज औसतन 8 से 10 प्रसव पीड़िता प्रसव के लिए आती हैं। इस स्थिति में प्रसव पीड़िता भी फर्श को बेड मान कर अपने नवजात शिशु को साथ फर्श पर ही लेटने को विवश है। ऐसे में तरह-तरह की संक्रामक बीमारी की चपेट में आने की प्रबल संभावना रहती है। किन्तु, बीमार स्वास्थ्य सिस्टम के सामने इन विवश प्रसूताओं के सामने और विकल्प भी क्या है। डॉक्टर की बात करें तो पीएचसी प्रभारी डॉ. नीरज कुमार सिंह, डॉ. सुजीत कुमार व डाॅ. मनीष कुमार तैनात है और इन्हीं तीनों के भरोसे डेढ़ लाख से अधिक की आबादी का इलाज हो रहा है। ऐसी स्थिति में अधिकांश कार्य आयुष चिकित्सकों और आरबीएसके टीम के भरोसे हो रहा है।

कमरे के अभाव में बरामदे में रखी जाती हैं दवाइयां

संसाधनों का आलम यह है कि चिकित्सकों से लेकर कर्मियों तक को बैठने के लिए भी पर्याप्त रूम नहीं है। प्रभारी के चेंबर सहित मात्र 6 रूम हैं। दवाई का रखरखाव के लिए भी पर्याप्त भंडार रूम नहीं है। जिसके कारण बरामदे के फर्श पर सरकारी दवाइयां रखी जाती है, जो सुरक्षा के मद्देनजर भी असुरक्षित है। संसाधनों के इस हालात के बीच कोविड-19 का भयावह स्थिति देखते हुए सरकार पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ और मजबूत बनाने की दावा कर रही है। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे में कैसे स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ और मजबूत बनाया जा सकता है।

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