
नवगछिया: बरौनी-कटिहार रेलखंड के काढ़ागोला और सेमापुर के पास ट्रेन दुर्घटना में शुक्रवार को रेलकर्मी प्रमोद यादव की मौत के बाद सिर्फ एक फोनकॉल घर पर आने के बाद घर की खुशियां मातम में बदल गयी। घर के आंगन में बच्चों की खुशियां चीत्कार में तब्दील हो गयी।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!चारों ओर चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी। देखते ही देखते पूरे गांव में यह खबर फैल गयी और लोग बदहवास प्रमोद के घर की ओर आने लगे। प्रमोद संघर्ष करने वालों के लिए थे मिशाल पूरे गांव में प्रमोद अपने हंसमुख स्वभाव के कारण लोगों के बीच लोकप्रिय थे। अपने के संघर्ष के बल पर वे दहियार से शिक्षक और फिर रेलकर्मी तक का सफर तय किए थे।
जो गांव के लोगों के लिए प्रेरणा थी। उनको देखकर गाँव के क़ई युवाओं ने नौकरी के लिए संघर्ष करना शुरू किया और उन्हें भी सफलता मिली। पत्नी को बच्चों के परवरिश की चिंता दुर्घटना के बाद बच्चे बदहवास होकर पिता को ढूंढ रहे थे। पत्नी को बच्चों के परवरिश की चिंता सताने लगी है। वृद्ध मां अरुना देवी को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि उसका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है।
वह अभी भी घर के दरवाजे पर खड़ी होकर अपने पुत्र के आने का इंतजार करती है। ग्रामीणों ने कहा चला गया गांव का हीरा प्रमोद की मौत पर ग्रामीणों ने कहा कि गांव का हीरा चला गया। लोगों ने बताया कि प्रमोद घर में इकलौता कमाने वाला था। जिसके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी। प्रमोद ने बहुत कम उम्र में परिवार की क़ई जिम्मेदारी संभाली थी। वह दूध बेचने के साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते थे। नौकरी के बाद उसने छोटे भाई प्रभास यादव को पढ़ाया-लिखाया।