1600 करोड़ रुपए के सृजन घोटाले की मोस्टवांटेड मनोरमा देवी की बहू प्रिया कुमार अब भी स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कर रही है। प्रिया व्हाट्सएप कॉल के जरिए अपने नजदीकी लोगों से संपर्क में है। व्हाट्सएप कॉल आसानी से ट्रैक और टैप नहीं हो पाता है। सीबीआई चाहे तो स्मार्ट फोन के इस्तेमाल मात्र से ही घोटाले की किंगपिग प्रिया कुमार को आसानी से पकड़ सकती है।

महाघोटाले के खुलासे के बाद से फरार, रेड कॉर्नर नोटिस की हुई थी अनुशंसा

सीबीआई के नजर में प्रिया कुमार और उसके पति अमित कुमार फरार हैं। दोनों अब तक अपना पक्ष रखने सीबीआई के समक्ष उपस्थित भी नहीं हुए हैं। अगस्त माह से प्रिया और अमित भूमिगत हैं। उनके दोनों घर और कोचिंग में ताला लटका हुआ है। घोटाला उजागर होने के बाद प्रिया और अमित कुमार के विदेश भागने की आशंका को देखते हुए रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अनुशंसा एसएसपी ने पुलिस मुख्यालय से की थी। सात अगस्त को सृजन महिला विकास समिति के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज हुई थी। लेकिन प्रिया कुमार और अमित कुमार दो अगस्त से ही फरार हैं। दोनों को पहले ही भनक लग गई थी कि घोटाले में उनकी गर्दन फंसने वाली है।

भागलपुर, बांका और सहरसा में दर्ज हैं 23 एफआईआर

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सास मनोरमा देवी के निधन के बाद प्रिया कुमार सृजन की सचिव बनी थी। इस कारण उसके खिलाफ भागलपुर, बांका और सहरसा में 23 अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज कराई गई है, जो करीब 1600 करोड़ रुपए के घोटाले के संबंधित हैं। दोनों से पूछताछ से पूरे घोटाले का खुलासा हो सकता है। घोटाले में कौन-कौन आईएएस, आईपीएस, नेता व मंत्री शामिल हैं, उनके बारे में सीबीआई को आसानी से पता चल सकता है। लेकिन दोनों को खोजने के लिए सीबीआई के स्तर से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

सास गली में घूम बेचती थी साड़ी

एक सिलाई मशीन से बिजनेस शुरू करने वाली मनोरमा देवी, महिला सहकारिता के क्षेत्र में भागलपुर में बेंचमार्क मानी जाती थीं। 1000 करोड़ की मालकिन मनोरमा देवी आज लीजेंड स्टोरी ऑफ अनलिमिटेड करप्शन बन गईं। पति अवधेश कुमार की 1991 में मौत के बाद मनोरमा देवी छह बच्चों की देखभाल के लिए सबौर आईं थीं। अवधेश कुमार रांची स्थित अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक थे। रांची में ही उन्होंने 1993-94 में सृजन महिला विकास सहयोग समिति की स्थापना की थी। उसमें देवर ने सहयोग किया था। बाद में देवर को भी समिति से अलग कर दिया।

1996 में सबौर में ही मनोरमा देवी ने एक कमरा किराये पर लेकर कपड़े सिलना व बेचना शुरू किया। पैसे की कमी आड़े आई तो रजन्दीपुर पैक्स ने 10 हजार रुपए उन्हें उधार दिए। समिति से महिलाओं को जुड़ता देख भागलपुर को-ऑपरेटिव बैंक ने सृजन को 40 हजार रुपए कर्ज दिया। उसके बाद सिल्क साड़ी, सजावटी सामान आदि का निर्माण होने लगा। ग्रामीण विकास विभाग ने सृजन को ग्रेड-1 का प्रमाण पत्र दिया। केंद्रीय वित्त मंत्रालय और बिहार के सहकारिता विभाग ने संस्था को सम्मानित किया। स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के गठन के लिए जब राज्य सरकार ने जीविका का गठन किया तब सृजन को माइक्रो फाइनेंस से लेकर तमाम तरह का जिम्मा मिला। सरकारी मदद के लिए कई खाते बैंकों में भी खोले गए और उसी के बाद सृजन की सरकारी धन में सेंधमारी शुरू हो गयी।