एक ओर जहां हमारे समाज में दहेज के कारण कई गरीब युवतियों की शादी रुक जाती है, वहीं बांका में रहने वाले आदिवासियों में दहेज प्रथा ही नहीं है। उल्टे बहू को घर लाने के लिए शगुन के तौर पर वर के अभिभावकों को वधू पक्ष को 12 रुपये देने पड़ते हैं। उनके समाज में लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है।

वे सिर्फ सुशील, संगीत-नृत्य में पारंगत व कर्मठ बहू की चाहत रखते हैं। वे मानते हैं कि पिता के लिए कन्यादान ही सबसे बड़ा दान है। इसलिए इस आदिवासी समुदाय में लड़के वालों को ही बेटियों के सम्मान में 12 रुपए नगद देने का प्रावधान है। इनके समाज में यह परंपरा लंबे समय से आजतक चली आ रही है।

इतना ही नहीं शादी के लिए लड़की के घर आने वाले बारात का खर्च भी लड़का पक्ष ही उठाता है। इसके कारण इनके परिवार में दहेज के कारण न बेटियों की शादी में कोई रुकावट आती है और उन्हें परिवार के लिए बोझ माना जाता है। इसके चलते इनका समाज दहेज हत्या जैसे अमानवीय वारदात से भी सुरक्षित है।उधर विवाह में वर पक्ष द्वारा देय रकम काफी कम होने के कारण उन्हें भी कोई खास परेशानी पेश नहीं आती है। फलत: इनके समाज में यह परंपरा बदस्तूर चली आ रही है। राजेश सोरेन, गणपत मुर्मु सहित कई अन्य आदिवासियों ने बताया कि उनकी शादियां मात्र 12 रुपये में ही हुई हैं।

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लिव इन रिलेशनशिप को भी यहां मिलती है मान्यता

यहां के संताल आदिवासी समाज में आज भी नवयुवक-नवयुवतियों के कुछ समय के लिए एक साथ रहने व एक-दूसरे को समझने की परंपरा कायम है। बुजुर्गों का मानना है कि इससे युवक-युवतियों को शादी के पूर्व कुछ दिनों तक एक साथ बिताकर एक दूजे को समझने का मौका मिलता है।
इसके बाद रीति-रिवाज के साथ परिणय सूत्र में बंधने पर उनका संबंध अधिक टिकाऊ होता है। यही नहीं इनके समाज में लिव इन रिलेशन को भी मान्यता है। जयपुर क्षेत्र में कई ऐसे जोड़े देखे जा सकते हैं जो बिना शादी किए बाल-बच्चों के साथ सुखी जीवन बिता रहे हैं।

ऐसे लड़का पक्ष द्वारा भी लड़की पक्ष वाले से न कभी दहेज की मांग की जाती है और न कभी ससुराल से धन-संपत्ति की मांग को लेकर बहू को प्रताडि़त किया जाता है। यही कारण है कि इस समाज में आज तक दहेज के कारण किसी विवाहिता की अकाल मौत नहीं हुई है।

कहा-ग्राम प्रधाान ने हमारे समाज में दहेज का प्रचलन नहीं है। अब भी बहू लाने के लिए लड़की वालों को बारह रुपए नगद बतौर शगुन दिया जाता है। यही वजह है कि हमारे समाज में कोई बेटी दहेज की बेदी पर जिंदा नहीं जलाई जाती है।