कलियुग में जब पाप की सीमा पार हो जाएगी तब दुष्टों के संहार के लिए भगवान कल्कि प्रकट होंगे। कल्कि अवतार एकमात्र ऐसे अवतार हैं जिनके अवतरण से पूर्व सिद्धपीठों में उनकी मूर्तियां स्थापित हैं। पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि अवतार होगा।

उत्तर प्रदेश में संभल नामक स्थान पर भगवान कल्कि का मंदिर है। यहां हर वर्ष अक्तूबर-नवंबर में कल्कि महोत्सव मनाया जाता है। जयपुर में हवा महल के पास भगवान कल्कि का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के अहाते में एक छतरीनुमा गुमटी है। इस गुमटी में पीले संगमरमर के घोड़े की मूर्ति है। इस घोड़े के खुर का अग्रभाग खंडित है। कहा जाता है कि जिस दिन घोड़े के पैर का यह घाव भर जाएगा, उस दिन भगवान कल्कि का अवतरण होगा।

राजस्थान के साबला गांव में भगवान कल्कि की मूर्ति घोड़े पर सवार है। इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर हैं, एक पैर सतह से ऊंचा है। मान्यता है कि यह पैर धीरे-धीरे भूमि की तरफ झुक रहा है। जब यह पैर पूरी तरह जमीन पर टिक जाएगा, तब दुनिया में बदलाव शुरू हो जाएगा। मथुरा में गोवर्धन स्थित श्री गिरिराज मंदिर परिसर में कल्कि भगवान का मंदिर स्थापित है। यहां के बोर्ड पर कलियुग की समाप्ति की सूचना अंकित है।

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वाराणसी में दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में भगवान कल्कि का मंदिर स्थापित है। यहां के अलावा दिल्ली, नैमिषारण्य, कोलकाता, गया धाम, बृज घाट गढ़मुक्तेश्वर, वैष्णो देवी कटरा, मानेसर आदि स्थानों पर भी कल्कि अवतार की मूर्ति स्थापित हैं। नेपाल में भी कल्कि भगवान की मूर्ति स्थापित है।