दिल्ली – अंजनी कश्यप, 1 मई को आनंद विहार से चली 12488 सीमांचल एक्‍सप्रेस 4 मई तक जोगबनी नहीं पहुंची है. शनिवार सुबह एक यात्री का मेल आया तो अब हैरानी नहीं हुई बल्कि शर्म आई कि चार दिनों में भी रेल अपनी मंज़िल पर नहीं पहुंच पाती है. सीमांचल एक्सप्रेस के लेट चलने की कहानियां हैजे के प्रकोप की तरह फैली हुई हैं. आप कल्पना कीजिए कि कोई ट्रेन दिल्ली से बिहार के आख़िरी छोर तक चार दिनों में भी नहीं पहुंच पाती है.

सीमांचल के बारे में यात्रियों का कहना है कि यह ट्रेन अक्सर 20 से 30 घंटे की देरी से चलती ही है. यात्री का भेजा हुआ स्क्रीन शॉट भी लगा रहा हूं. असीम सिन्हा जी ने बताया है कि 12816 नंदनकानन एक्सप्रेस भी 14 घंटे लेट है. यह ट्रेन दिल्ली से पुरी जाती है. गोपाल दूबे ने लिखा है कि पिछले छह महीने में उन्होंने बिहार से चंडीगढ़ की यात्रा की है.

हर बार 8 से 10 घंटे की देरी से पहुंचे हैं. आज उनकी पत्नी छपरा स्टेशन पर अमरनाथ एक्सप्रेस 15097 का इंतज़ार कर रही हैं, जो 18 घंटे लेट है. यह ट्रेन भागलपुर 26 घंटे लेट पहुंची थी. ऐसी अनेक ट्रेनें हैं जो समय से नहीं चल रही हैं. हमने स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस का मामला उठाया. दो दिन प्राइम टाइम में सिर्फ एक ट्रेन पर फोकस किया.

यह स्वतंत्रता सेनानियों का भी घोर अपमान है कि उनके नाम पर चली ट्रेन कभी समय से ही नहीं चलती है. यह ट्रेन भी आदतन 20 से 30 घंटे की देरी से चलती है. जबकि इसका कोच नया है. चमचमाती गाड़ी को देखकर हर किसी को इससे जाने का मन करता है मगर लेट चलने की आदत के कारण यात्रियों का कलेजा कांप जाता है. अब जाकर शुक्रवार को यह ट्रेन पहली बार बिहार के जयनगर से समय पर रवाना हुई है.

उसके लिए आस पास के स्टेशनों से बोगी मंगा कर एक नई रेल बनाई गई जिसे रवाना किया गया. मगर यह तो फौरी इंतज़ाम हुआ. लगता है कि रेलवे के पास 20-30 घंटे की देरी का कोई ब्रैकेट है जिसमें वह कई रेलगाड़ियों को डाल कर हमेशा के लिए भूल चुकी है. हम देखेंगे कि आने वाले समय में स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस समय से चल रही है या नहीं. ऐसा न हो कि टीवी में आने के दबाव में एक दो दिन राइट टाइम चला दिया और फिर सब वही ढाक के तीन पात. मैं रेलगाड़ी के कोच का रंग बदल देने, मोबाइल चार्जर लगा देने, वाई फाई चला देने और कुछ अन्य सुविधाएं देकर हेडलाइन लूटने वाली ख़बरों को ज़्यादा महत्व नहीं देता.

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रेलवे का काम है कि वह सुविधाओं का विस्तार करे. हमें देखना चाहिए कि रेल अपना मूल काम कैसा कर रही है. क्या आप सही समय पर सफ़र पूरा कर रहे हैं? क्या रेलवे आपके समय की कीमत समझती है, क्या आप अपने समय की कीमत समझते हैं? आप अपने अनुभव प्रमाण के साथ लिखते रहें. हमारे पास संसाधन नहीं हैं, इसलिए आपकी मदद से ही रेलवे की समीक्षा कर पाऊंगा. हमारा मकसद यही है कि पीयूष गोयल काम करें. अंग्रेज़ी वेबसाइट दि वायर में उनके बारे में जो स्टोरी आई है वो किसी तरह से रफा दफा हो गई, चर्चाओं से ग़ायब कर दी गई लेकिन रेल को आप ग़ायब नहीं कर सकते.

रोहिणी सिंह ने दि वायर में रिपोर्ट की है कि मंत्री बनने के कुछ महीने बाद उनकी पत्नी की कंपनी के शेयर एक हज़ार गुना दाम में उस कंपनी ने ख़रीदे जिसके धंधे का संबंध मंत्री जी के मंत्रालय से था. मंत्री और कंपनी के खंडनों से ही यह मामला किनारे लगा दिया गया. कोई जांच नहीं हुई. ख़ैर ये तो हुआ मीडिया मैनेजमेंट का पार्ट. लेकिन रेल मंत्री के तौर पर रेल मैनेजमेंट का भी तो पार्ट है. उस पार्ट को कौन निभाएगा. जब ट्रेन 30-30 घंटे की देरी से चल रही हों, मीडिया किस लिहाज़ से पीयूष गोयल को डाइनेमिक मंत्री लिखता है. रेलमंत्री को भी सलाह है कि वे मीडिया में अपनी ब्रांडिंग को छोड़ कुछ काम करें. यात्रियों के सफ़र के अनुभव को बेहतर बनाएं.