नवगछिया : प्रखंड के रामगढ़ स्थित मां वामकाली के मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। यह मंदिर इलाके में सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है।इस मंदिर में सच्चे मन से दस्तक देने वाले भक्तों की झोली अवश्य भरती है। एवं निसंतान महिलाओं की सूनी गोद भी आबाद हो जाती है।ऐसी लोगों की मान्यता है।कहा जाता है कि इसके लिए मैया को चढ़ावा के रूप में खप्पर चढ़ाया जाता है।

वहीं इस गांव के लोग मां को अपनी गृह देवी के रूप में पूजते हैं। शादी-विवाद समेत अन्य कोई शुभ कार्य करने के पहले मैया के दरबार में हाजिरी देकर चढ़ावा चढ़ाते हैं। एवं मैया की इजाजत के बाद ही कार्य का शुभारंभ करते हैं। कार्य संपन्न होने के बाद पुनः मैया के दरबार में चढ़ावा चढ़ाते हैं।कहा जाता है मैया की कृपा से गांव समेत आसपास के कई गांवों में कभी किसी प्रकार की महामारी नहीं होती है। मैया के कृपा से आज भी कई लोग विभिन्न विभागों में अच्छे-अच्छे पदों पर काबिज हैं।इस मंदिर में हर वर्ष मैया की प्रतिमा बिठाई जाती है।एवं इस अवसर मंदिर परिसर भव्य मेला भी लगता है। मैया को चढ़ावे के रूप में सिर्फ खप्पर चढ़ाई जाती है।

कालीपूजा के अवसर पर पूजा-अर्चना के दौरान हर वर्ष मैया के दरबार में दस हजार से अधिक भक्तों के द्वारा खप्पर चढ़ाई जाती है।यह खप्पर भक्तों के द्वारा अपनी मनोकामनाएं पूरी होने के पश्चात चढ़ाया जाता है।यहां कटिहार से लेकर बेगूसराय तक के लोग खप्पर चढ़ाने आते हैं। जिसके कारण पूजा-अर्चना के दौरान परिसर में लोगों की भीड़ उमड़ती है।

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पांच सौ वर्ष पहले पेड़ के नीचे रखी गई थी नींव

मंदिर की नींव करीब पांच सौ वर्ष पहले मुन्नी बाबा ने एक पेड़ के नीचे रखी थी। बाद में उसी जगह भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। पुजारी सुभाष ठाकुर बताते हैं कि गांव के मुनि बाबू मिश्र को मां ने स्वप्न दिया था कि मैं बहियार स्थित एक जंगल में रह रहा हूं।मैं वामकाली हूं।मेरी अपने गांव में स्थापना करो।नींद खुलते ही मुन्नी बाबू खुद स्वप्न में मां द्वारा बताए गये स्थान पर पहुंच कर मैया की पिंडी को उठाकर गांव लाए व पेड़ के नीचे स्थापित किया।