ठीक एक माह बाद 17 अगस्त को विषहरी पूजा होगी। इसको ले परंपरिक तरीके से मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। बिहुला विषहरी के लोकगीत गूंजने लगे हैं। लंबे समय तक इस परंपरा को महज एक गाथा माना जाता रहा, लेकिन अब कई लेखक मान चुके हैं कि अंग प्रदेश का इतिहास इस गाथा का साक्षी है। .

वहीं समाजशास्त्री मानते हैं कि यह महज परंपरा नहीं बल्कि समाज की नजर में विशिष्टता और गौरव का भी विषय है। इसलिए नई पीढ़ी भी इस पंरपरा जुड़ती चली जा रही है। समाजशास्त्र के प्राध्यापक आईके सिंह कहते हैं कि भारत परंपराओं और मूल्यों का देश है। यहां जितनी धार्मिक या अच्छी सामाजिक परंपराएं हैं तथ्य, साक्ष्य, लोक कल्याणकारी मान्याता आदि के आधार पर उसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं। इसलिए आधुनिकता हमारी अच्छी परंपराओं को मिटा नहीं पाती है।

वहीं इतिहासकार मानते हैं कि यह महज आस्था और परंपरा का संगम नहीं बल्कि इसमें इतिहास की झलकियां भी हैं। इसपर लगातार शोध भी हो रहा है। अब यह तथ्य सामने आने लगे हैं कि वाकई बिहुला विषहरी की कहानी भागलपुर क्षेत्र के इतिहास से जुड़ी है। पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य भी सामने आ रहे हैं। शायद इसलिए भी विषहरी पूजा के दौरान पूरी कहानी का चित्रण मूर्तियों एवं परंपराओं के जरिये किया जाता है।.

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मंजूषा के जरिये देश दुनिया में पढ़ी जा रही गाथा: मंजूषा कला के जरिये देश दुनिया में बिहुला विषहरी की परंपरा दस्तक दे रही है। हाल में रेलवे ने विक्रमशिला की पूरी रैक पर मंजूषा पेंटिंग करायी है। वहीं सिल्क, लिनन और हैंडलूम कपड़ों पर मंजूषा की प्रिंटिंग पहले से हो रही है। इन कपड़ों की विदेशों में भी मांग है। .

विक्रमशिला महाविहार की खुदाई में भी मिले हैं साक्ष्य, यह परंपरा विशिष्टता का विषय, नई पीढ़ी भी जुड़ रही, 17 अगस्त को होती है पूजा

1. बिहुला विषहरी की कहानी चंपानगर के तत्कालीन बड़े व्यावसायी और शिवभक्त चांदो सौदागर से शुरू होती है। विषहरी शिव की पुत्री कही जाती हैं लेकिन उनकी पूजा नहीं होती थी। विषहरी ने सौदागर पर दबाव बनाया पर वह शिव के अलावा किसी और की पूजा को तैयार नहीं हुए। नाराज विषहरी ने उनके पूरे खानदान का विनाश शुरू कर दिया। छोटे बेटे बाला लखेन्द्र की शादी बिहुला से हुई थी। उनके लिए सौदागर ने लोहे बांस का घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे। विषहरी ने उसमें भी लखेन्द्र को डस लिया। सती हुई बिहुला पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक गई और पति का प्राण वापस कर आयी।

2. ‘ मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई बजने लगे बिहुला विषहरी गीत ‘ आधुनिकता हमारी अच्छी परंपराओं को मिटा नहीं पाती

बिहुला विषहरी पुजा समारोह समिति छोटी ठाकुरवाड़ी रोड की बैठक मंदिर प्रांगण में अध्यक्ष विमल किशोर पोद्दार की अध्यक्षता में आयोजित की गई  सती बिहुला के मायके नवगछिया में आगामी 17 और 18 अगस्त को आयोजित होने वाले पुजा समारोह की तैयारियां पर चर्चाएं की गई जिसमें निर्णय लिया गया कि बंगाल के ढाक से प्रतिमा पुजन की शुरुआत होगी और पंडाल में बिहुला विषहरी से जुड़ी कलाकृति को दर्शाया जाएगा

दो दिवसीय पुजा समारोह का समापन 18 अगस्त को देर रात्रि में विर्सजन के साथ सम्पन्न होगा अध्यक्ष विमल किशोर पोद्दार ने बताया कि पुरे अंग क्षेत्र में एक माह तक बिहुला विषहरी के गीत गाए जाएंगे  बैठक में मुख्य रूप से संयोजक मुकेश राणा अजय कुशवाहा कौशल जयसवाल मो नईम अख्तर मनीष भगत अजय विश्वकर्मा धीरज शर्मा सुमित कुमार विक्की केडिया प्रदीप शर्मा प्रेम कुमार विष्णु गुप्ता मुन्ना महतो नंदन महतो दिलीप महतो बंटी पौद्दार रमेश राय अनीष यादव तारकेश्वर गुप्ता दीपक शर्मा शंभु चिरानीयां मोहन पौद्दार सहित अन्य उपस्थित थे