शास्त्रों में ‘तप’ के अंतर्गत व्रतों की महिमा वर्णित है। जैसे नदियों में गंगा, प्रकाश तत्वों में सूर्य और देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है, वैसे ही व्रतों में ‘एकादशी’ व्रत प्रधान है। यह भगवान विष्णु का पर्व माना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार, वर्ष भर में पड़ने वाली 24 (मलमास वर्ष में 26) एकादशियों में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। इसे ‘देवशयनी एकादशी’, ‘हरिशयनी एकादशी’ और ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। यह महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली, सब पापों को हरने वाली है। इस बार यह 12 जुलाई को है।.

इस दिन से चातुर्मास्य (चौमासा) का प्रारम्भ होता है, जो कार्तिक मास की एकादशी (देव उठनी) तक रहता है। चातुर्मास्य में प्रतिदिन भगवान विष्णु के समक्ष ‘पुरुष सूक्त’ का जप करने का भी महात्म्य है।.

इस दिन से भगवान विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं और क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते हैं, इसलिए इस तिथि को ‘हरिशयनी’ एकादशी भी कहा जाता है। चूंकि यह चारमास की अवधि भगवान विष्णु की निद्राकाल की अवधि मानी जाती है, इसलिए कृषि को छोड़कर धार्मिक दृष्टि से किए जाने वाले सभी शुभ कायार्ें, जैसे- विवाह, उपनयन, गृह-प्रवेश मांगलिक कायार्ें पर विराम लग जाता है और साधु-संत एक स्थान पर रह कर विशेष साधना करते हैं।.

Whatsapp group Join

देवशयन के संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। भविष्यपुराण में उल्लेख है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘महाराज यह देवशयन क्या है? जब देवता ही सो जाते हैं, तब संसार कैसे चलता है? देव क्यों सोते हैं?’ श्रीकृष्ण ने कहा, ‘राजन्! एक समय योगनिद्रा ने प्रार्थना की- ‘भगवन् आप मुझे भी अपने अंगों में स्थान दीजिए।’ तब भगवान ने योगनिद्रा को नेत्रों में स्थान देते हुए कहा-‘तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी।’ ऐसा सुनकर योगनिद्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया।’

भागवत महापुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने एकादशी के दिन विकट आततायी शंखासुर का वध किया, अत: युद्ध में परिश्रम से थक कर वे क्षीर सागर में सो गए। उनके सोने पर सभी देवता भी सो गए, इसलिए यह तिथि देवशयनी एकादशी कहलाई। .

भगवान सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान मधुसूदन की मूर्ति को शयन कराएं और व्रत-नियम धारण करें। फिर तुला राशि में सूर्य के जाने पर (कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी) पुन: भगवान जनार्दन को शयन से उठाएं और इस मंत्र से प्रार्थना करें-.

 

‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुध्यते जगत् सर्वं चराचरम्॥’.

जो मनुष्य इस चातुर्मास्य के समय अनेक व्रत नियमपूर्वक रखता है, वह कल्पपर्यंत विष्णु लोक में निवास करता है, ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। भगवान जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह, यज्ञादि क्रियाएं संपादित नहीं होतीं और देवउठनी एकादशी के दिन उनके जागने पर सभी धार्मिक क्रियाएं पुन: प्रारम्भ हो जाती हैं